अधिगम (Learning)
अधिगम का अर्थ होता है “सीखना”। अधिगम एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन भर चलती रहती है जिसके द्वारा हम कुछ ज्ञान प्राप्त करते रहते है या इससे हमारे व्यवहार में परिवर्तन होता है। जन्म के बाद से ही बालक सीखना शुरू कर देता है जो मृत्यु तक चलती रहती है।
अधिगम व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में सहायता करता है जिससे जीवन के लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायता मिलती है। अधिगम के बाद व्यक्ति स्वयं और दुनिया को समझने के योग्य हो जाता है।
अधिगम के विषय मे विद्वानों द्वारा दिये गए कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं निम्न प्रकार से है :-
- गेट्स के अनुसार :- “अनुभव द्वारा व्यवहार में रूपांतर लाना ही अधिगम है।
- ई० ए० पील :- “अधिगम व्यक्ति में एक परिवर्तन है, जो उसके वातावरण के परिवर्तनों के अनुसरण में होता है।”
- क्रो एवं क्रो के अनुसार ” सीखना आदतों, ज्ञान एवं अभिवृत्तियों का अर्जन है। इसमें कार्यो को करने के नवीन तरीके सम्मिलित है और इसकी शुरुआत व्यक्ति द्वारा किसी भी बाधा को दूर करने अथवा नवीन परिस्थितियों में अपने समायोजन को लेकर होती है। इसके माध्यम से व्यवहार में उत्तरोत्तर परिवर्तन होता रहता है। यह व्यक्ति को अपने अभिप्राय अथवा लक्ष्य को प्राप्त करने में समर्थ बनाती है।
इस प्रकार विद्वानों के परिभाषाओ के माध्यम से हम समझ सकते है कि “यदि किसी विषय वस्तु के ज्ञान के आधार पर कुछ परिवर्तन करने एवं उत्पादन करने में सक्षम हो गया हो तो उसके सीखने की प्रक्रिया को अधिगम कहा जायेगा ।”
विकास का अधिगम से संबंध
सीखना जीवन भर चलने वाली एक प्रक्रिया है, इसका किसी विशेष आयु वर्ग से जोड़ कर नही देखा जा सकता है। यह अवश्य कहा जा सकता है कि अधिगम और विकास एक-दूसरे से अन्तःसम्बन्धित है। विकास अधिगम को प्रभावित करता है और अधिगम भी विकास को प्रभावित करता है। विकास और अधिगम एक समान गति से आगे नही बढ़ता है।
शारीरिक विकास, विशेषकर छोटे बच्चो में मानसिक और संज्ञानात्मक विकास में मददगार है। मानसिक और भाषायी विकास,सामाजिक विकास एवं अधिगम को को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। अर्थ निकलना, अमूर्त सोच (Abstract Thought) की क्षमता विकसित करना विवेचना व कार्य, अधिगम की सर्वांधिक महत्वपूर्ण पहलू है। भावनाएं, दृष्टिकोण और आदर्श , संज्ञानात्मक विकास के अभिन्न हिस्से है तथा भाषायी विकास , मानसिक चित्रण, अवधारणाओं व तार्किकता से इनका गहरा संबंध है।
बच्चे एक दूसरे से व्यक्तिगत स्तर पर विभिन्न तरीको से सीखते है। वे अनुभव के माध्यम से , स्वयं करके या बना कर, प्रयोग करने से , पढ़ने से, सुनने, पूछने इत्यादि जरियो से अभिव्यक्त करने से सीखते है। अपने विकास के रास्ते मे बच्चो को इस प्रकार का अवसर मिलने चाहिये। बालको में प्राकृतिक और सामाजिक दुनिया के प्रक्रिया का भी विकास होता है। इसमें दुसरो के साथ अपने रिश्तों के विभिन्न सिद्धान्त भी शामिल है। जिसमे आधार पर उन्हें ये मालूम चलता है कि चीझे जैसी है वैसी क्यों है? साथ ही उन्हें मालूम चलता है कि कारण और कारक के बीच क्या संबंध है और कार्य व निर्णय लेने के क्या आधार है।