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Continuous and Comprehensive Evaluation | सतत् और व्यापक मूल्यांकन #ctet #ctetsuccess #eductet #cdp #pedagogy



 सतत् और व्यापक मूल्यांकन क्या है? What is Continuous and Comprehensive Evaluation?


सतत् और व्यापक मूल्यांकन (CCE) का अर्थ छात्रों के विद्यालय आधारित मूल्यांकन की प्रणाली से है, जिसमें छात्रों के विकास के सभी पक्ष शामिल हैं। यह एक बच्चे की विकास प्रक्रिया है, जिसमें दोहरे उद्देश्यों पर बल दिया जाता है। ये उद्देश्य एक ओर मूल्यांकन में निरन्तरता और व्यापक रूप से सीखने के मूल्यांकन पर तथा दूसरी ओर व्यवहार के परिणामों पर आधारित है। 


मूल्यांकन अध्यापन एवं अधिगम प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है। शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का अंतिम सोपान मूल्यांकन ही है। माध्यमिक स्तर पर सतत एवं व्यापक मूल्यांकन को लागू करने का स्पष्ट निर्देश पूर्व में CBSE द्वारा दिया जा चुका है। सतत एवं व्यापक मूल्यांकन की प्रणाली में छात्रों के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखा जाता है। 


सतत एवं व्यापक मूल्यांकन में दो भाव निहित हैं :- 

1. सतत मूल्यांकन 

2. व्यापक मूल्यांकन 



सतत मूल्यांकनः- 

 सतत मूल्यांकन करने का अर्थ छात्रों के ‘वृद्धि व विकास’ का मूल्यांकन एक बार के बजाय निरंतर करना, क्योंकि अधिगम एक सतत प्रक्रिया है तथा इसका मूल्यांकन भी उसी प्रकार होना चाहिए। सतत मूल्यांकन करने के लिए वर्तमान में तीन प्रकार के मूल्यांकन का प्रयोग किया जाता है

(i) निदानात्मक मूल्यांकन

(ii) रचनात्मक मूल्यांकन

(iii) संकलनात्मक मूल्यांकन 



Evaluation of Learning | अधिगम का मूल्यांकन

व्यापक मूल्यांकनः- 

 सतत मूल्यांकन व्यवहार के सिर्फ संज्ञानात्मक मूल्यांकन करता है, जबकि व्यापक मूल्यांकन व्यवहार के तीनों पक्ष संज्ञानात्मक, भावात्मक, क्रियात्मक का मूल्यांकन करता है। विद्यालय की संपूर्ण शैक्षिक गतिविधियों के संदर्भ में इसका प्रयोग किया जाता है। इससे शैक्षिक एवं गैर-शैक्षिक दोनों पक्षों का आकलन होता है। इसके लिए प्रेक्षण विधि समाजमिति, मनोवृत्ति आदी मापनी का प्रयोग किया जाता है।


सतत व व्यापक मूल्यांकन का महत्त्व Importance of Continuous and Comprehensive Evaluation


  • शिक्षक को सही कार्य नीति बनाने में मदद करता है।
  • शैक्षिक व गैर शैक्षिक दोनों उपलब्धियों का आकलन होता है।
  • सीखने की प्रक्रिया पर बल दिया जाता है तथा त्रुटि होने पर सुधार करने का उपाय बताया जाता है। 
  • सतत मूल्यांकन विद्यार्थियों की कमजोरी को तुरंत पहचान कराता है तथा उसका निदान भी बताता है।
  • यह मूल्यांकन बालकों के सर्वांगीण विकास पर बल देता है।
  • तथा विषय, कैरियर आदि के चुनाव में भी मददगार साबित होता है।
  • उपलब्धि स्तर को निरंतर बनाए रखने व ऊँचा उठाने के लिए प्रेरित करता है ।।
  • अधिगम व शिक्षण प्रक्रिया में छात्र को महत्त्वपूर्ण बनाता है।
  • उपचारात्मक शिक्षण विधि का प्रयोग कर छात्रों की कई समस्याओं का समाधान किया जाता है।
  • यूनिट की समाप्ति पर निष्पादन जाँच करने पर यह पता चलता है कि विषय या किसी अध्याय के अधिगम में समस्या हो रही है।
  • बालकों के लिए एक प्रेरणा का काम करती है जिसमें अधिगम प्रक्रिया में रुचि उत्पन्न होती है। 


Evaluation of Learning | अधिगम का मूल्यांकन




सतत व व्यापक मूल्यांकन की विधियाँ ( Methods of Continuous and Comprehensive )

सतत व व्यापक मूल्यांकन के लिए निम्न प्रमुख विधियों को प्रयोग में लाया जाता है :- 

साक्षात्कार:- 

साक्षात्कार आंग्ल भाषा के Interview का हिंदी रूपांतर है, जिसका अर्थ है-आंतरिक विचार। सामान्यतः इस विधि का प्रयोग कर बालकों के विचार तथा दैनिक जीवन के प्रयोग व अधिगम किए गए ज्ञान को जाना जा सकता है।


प्रश्नावली:- 

बालकों को प्रश्नों की एक सुनियोजित सूची दी जाती है जिनका उन्हें उत्तर देना होता है तत्पश्चात् मूल्यांकन किया जाता है। इसका प्रयोग शाब्दिक व चित्रात्मक दोनों रूपों में होता है।


निरीक्षण :- 

इस विधि का प्रयोग व्यक्तिगत व सामूहिक अध्ययन दोनों के लिए किया जाता है। बालकों के मूल्यांकन के लिए यह विधि काफी उपयोगी है। प्राकृतिक परिस्थिति में बालक का मूल्यांकन किया जाता है तथा वास्तविक व्यवहार सामने आता है। यह विधि वस्तुनिष्ठ, निश्चित, क्रमबद्ध, प्रमाणिक तथा विश्वसनीय है। व्यवहारवादी इस विधि के प्रयोग पर बल देते हैं।



जाँच सूची ( Check List ) :- 

जाँच सूची में अध्यापक बालक के सभी तथ्यों जैसे- भाषा के प्रयोग, सामाजिकता, संवेगात्मकता, खेल के दौरान व्यवहार आदि को लिखते जाते हैं जिसको बाद में एकत्रित कर बालक का मूल्यांकन किया जाता है। इस विधि से बालक का उचित मूल्यांकन होता है।


विवरण  (Interpretation ) :-

विवरण में विद्यार्थी के कुछ समय के कार्य का नमूना एकत्र किया जाता है। यह नमूना दिन-प्रतिदिन के कार्य से भी किया जा सकता है या शिक्षार्थी के बेहतरीन कार्य से भी किया जा सकता है।



आवधिक परीक्षा :-

सतत मूल्यांकन के लिए यह विधि उपयोगी है, क्योंकि यूनिट में जो कुछ पढ़ाया जाता है, उसकी परीक्षा ली जाती है। ऐसा यूनिट खत्म होने के बाद लेने से तुरंत पता चल जाता है कि अधिगम सही तरीके से हो पाया है कि नहीं या फिर निष्पादन के तरीके में कोई कमी है।


वार्षिक परीक्षा :- 

यह व्यापक मूल्यांकन के लिए उपयोगी विधि है। उपरोक्त के अलावा जाँच सूची, विवरण, वर्णात्मक कॉर्ड आदि भी सतत व व्यापक मूल्यांकन में सहयोग दान करते हैं। 


वर्णनात्मक रिकॉर्ड  ( Descriptive Record ) :-


अध्यापक बच्चे को साथी शिक्षार्थी के अनुभव का वर्णनात्मक विवरण भी लिखना चाहिए। इससे बच्चे के जीवन कौशल के प्रत्येक पहलू का पता लगाने में उन्हें अवसर दिया जाता है और वे शिक्षार्थी की और अधिक सम्पूर्ण छवि का सृजन करने के लिए उसके पिछले विवरण को साक्ष्य के रूप में उसका उपयोग कर सकते हैं और संचयी रिकॉर्ड तैयार करने में उपयोग में लाया जा सकता है। 


Individual Difference | वैयक्तिक विभिन्नता




सतत् और व्यापक मूल्यांकन की विशेषताए  ( Characteristics of Continuous and Comprehensive Evaluation )



वैधता :- 

जब कोई मूल्यांकन अपने उद्देश्य की जाँच को पूर्ण करे और वह जितना अधिक पूर्ण करेगा उसकी वैधता उतनी अधिक होगी। शिक्षक को ऐसे प्रश्न ही मूल्यांकन हेतु बनाने चाहिए जो उद्देश्यों की पूर्ति करें। 


विश्वसनीयता :- 

विश्वसनीयता से तात्पर्य मूल्यांकन प्राप्तांकों की संगतता से होता है अर्थात् एक ही परिस्थिति परीक्षण या मूल्यांकन का परिणाम लगभग एक जैसा ही आए तो विश्वसनीय कहलाता है। 



वस्तुनिष्ठता :-

मूल्यांकन के लिए दिए गए प्रश्नों का अर्थ सभी छात्र एक समान ढंग से लगाएं तथा उनके उत्तरों की जाँच करते समय शिक्षक की मनोवृत्ति व पूर्वाग्रह का कोई प्रभाव न पड़े। 



व्यवहारिकता :- 

मूल्यांकन को उत्तम कहलाने के लिए यह आवश्यक है कि वह व्यावहारिक दृष्टिकोण से सही हो तथा प्रश्नों के उत्तर देने में तथा उनके क्रियान्वयन में भी कम समय लगे। मूल्यांकन में मानकीकरण, न्यायसंगतता तथा उपयोगिता का भी गुण होना चाहिए। मूल्यांकन का एक मानक बना होगा तो मूल प्राप्तांकों की व्याख्या करना आसान होगा।

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