सामाजीकरण का अर्थ ( Meaning of Socialization )
समाजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जो नवजात शिशु को सामाजिक प्राणी बनाती है। इस प्रक्रिया के अभाव में व्यक्ति सामाजिक प्राणी नहीं बन सकता। इसी से सामाजिक व्यक्तित्व का विकास होता है। सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत के तत्वों का परिचय भी इसी से प्राप्त होता है।
जब बालक सामाजिक प्रत्याशाओं तथा सामाजिक मानकों के अनुरूप व्यवहार करना सीख लेता है तो इसे समाजीकरण की संज्ञा दी जाती है। सामाजीकरण एक प्रक्रिया है, जो बालकों में धीरे-धीरे विकसित होती है। सामाजीकरण समाजिक नियमों का अधिग्रहण है। समाजीकरण का मूल उद्देश्य सामाजिक वातावरण में अनुकूलन तथा समायोजन करना है। सामाजीकरण अनुवांशिकता नहीं बल्कि वातावरण से प्रभावित होता है। यही कारण है कि इसके अंतर्गत मूल्य, विश्वास, मनोवृत्ति, संस्कृति, रीति-रिवाज, विभिन्न प्रकार के कौशल आदि का ज्ञानार्जन होता है, जो बालक के समाजीकरण में मदद पहुँचाते हैं।
बालको में सामाजिक व्यवहार :-
प्रारंभिक बाल्यावस्था ( 2 वर्ष से 6 वर्ष)
- अनुकरण (Imitation)
- सामाजिक अनुमोदन (Approval)
- सहानुभूति (Sympathy)
- परानुभूति (Empathy)
- प्रतिद्वंद्विता (Rivalry)
- आसक्ति (Attachment)
- मित्रता (Friendship)
- आक्रमकता (Aggressiveness)
- अहंभाव (Ego Centrism)
- पूर्वाग्रह (Prejudice)
उत्तर- बाल्यावस्था (6 वर्ष से 12 वर्ष)
- सामाजिक अनुमोदन
- प्रतिस्पर्द्धा
- उत्तरदायित्व
- सामाजिक कुशलता
- खेल भावना
किशोरावस्था ( 14 वर्ष से 18 वर्ष)
- दोस्तों का प्रभाव
- नये सामाजिक समूह
- विरोधात्मक प्रवृत्ति तीव्र
- नयी सोच
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समाजीकरण के कारक या तत्व Factors of Socialization
बालक जब इस संसार में आता है तब वह कोरे कागज की तरह होता है, फिर धीरे-धीरे जैसे वह बड़ा होने लगता है अपने आस-पास के साधन द्वारा प्रभावित होने लगता है तथा निरंतर वह आदर्शों व मूल्यों को सीखता है। इन आदर्शों व मूल्यों को वह अपने समाज (परिवार, साथी, स्कूल, शिक्षक) से सीखता है। समाजीकरण के कुछ सक्रिय कारक हैं तो कुछ निष्क्रिय हैं। निष्क्रिय का उदाहरण है- पुस्तकालय; सक्रिय कारक निम्न हैं ।
- परिवार (Family) :-
बालक के समाजीकरण के विभिन्न तत्वों में परिवार का प्रमुख स्थान है। इसका कारण यह है कि प्रत्येक बालक का जन्म किसी-न-किसी परिवार में ही होता है। परिवार को बालक की प्रथम पाठशाला भी कहते हैं। परिवार एक प्राथमिक समूह जिसमें माता -पिता, भाई-बहन, चाचा-चाची आदि आते हैं। बालक चूंकि सर्वाधिक समय इन्हीं लोगों के साथ व्यतीत करता है इसलिए परिवार का प्रभाव बालक के नैतिक मूल्यों के विकास में काफी पड़ता है। बालक की सबसे पहले अंतःक्रिया माता-पिता से होता है। माता-पिता से अपने बच्चों को उचित दुलार, प्यार स्नेह आदि मिलने से बच्चों में सुरक्षा की भावना, आत्मविश्वास, आदि का गुण विकसित होता है। यही नहीं, वह अपने परिवार में रहते हुए प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से अपने परिवार के आदर्शों, मूल्यों, रीति-रिवाजों, परम्पराओं तथा मान्यताओं एवं विश्वासों को भी धीरे-धीरे सीख जाता है।
जिन परिवार में टेलीविजन, रेडियो, अखबार, मैगजीन, इंटरनेट आदि का उपयोग होता है उन घरों के बच्चों में समाजीकरण अधिक तीव्र होता है अपेक्षाकृत अभाव वाले घरों के माता-पिता के आपसी संबंधों का भी प्रभाव बालक पर पड़ता है। प्रारंभिक बाल्यावस्था में परिवार का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि ‘मेरा परिवार’ विषय-वस्तु पढ़ाने के लिए सबसे उपयुक्त कक्षा नर्सरी से प्रथम है।
- आस-पड़ोस ( Neighborhood ):
पड़ोस भी एक प्रकार का बड़ा परिवार होता है। जिस प्रकार, बालक परिवार के विभिन्न सदस्यों के साथ क्रिया द्वारा अपनी संस्कृति एवं सामाजिक गुणों का ज्ञान प्राप्त करता है| आस-पड़ोस के व्यक्तियों के संपर्क में आने पर बालक नए-नए व्यवहार सीखता है। बालक अपने पड़ोसियों के साथ काफी समय गुजारता है। अत: पड़ोसियों के साथ पारस्परिक प्रक्रिया का प्रभाव उनके सामाजिक विकास पर पड़ता है। इस प्रभाव के कारण समाजीकरण की प्रक्रिया के साथ-साथ विसमाजीकरण की प्रक्रिया भी घटित होती है। बालक के व्यवहार में उसके समाज का एक महत्त्वपूर्ण योगदान होता है जो न सिर्फ उसे अच्छी शिक्षा प्रदान करता है बल्कि उसके व्यक्तित्व के विकास में भी सहायक होता है। यही कारण है कि अच्छे परिवारों के लोग अच्छे पड़ोस में ही रहना पसन्द करते हैं।
- स्कूल ( School ):-
परिवार के बाद स्कूल एक ऐसी संस्था है जिससे बालक सर्वाधिक प्रभावित होता है, क्योंकि वहीं पर वह अपने नए मित्रों को तथा ज्ञानात्मक कौशल, सामाजिक कौशल, व्यवहार आदि के रूप में नयी-नयी चीजों को ग्रहण करता है। बालक विद्यालय के वातावरण, शिक्षक के व्यवहार इत्यादि से भी प्रभावित होता है। यहाँ पर वह नए मानकों को प्राप्त करता है और व्यवहार को उसी के अनुरूप ढालने का प्रयास भी करता है। कक्षा में भी लोकतांत्रिक व्यवस्था को महत्त्व दिया जाना चाहिए। शिक्षक को बालक की सामाजिक पृष्ठभूमि की न तो उपेक्षा करनी चाहिए और न ही निंदा, बल्कि सभी को समाज एवं संस्कृति का महत्त्व बताना चाहिए।
- बालक के साथी ( Colleague / Friends )
सामान्य आयु के बच्चे एक अलग समूह का निर्माण करते हैं जो वे अपनी इच्छा के अनुकूल करते हैं। बच्चे अपनी इच्छा से किसी नये समूह में शामिल भी होते हैं और उसे छोड़ भी देते हैं। प्रत्येक बालक अपने साथियों के साथ खेलता है। वह खेलते समय जाति-पाँति ऊँच-नीच तथा अन्य प्रकार के भेद भावों से ऊपर उठकर दूसरे बालकों के साथ अन्तःक्रिया द्वारा आनन्द लेना चाहता है। इस कार्य में उसके साथी महत्त्वपूर्ण भूमिक निभाते हैं। अच्छे मित्रगण बनें तो अच्छी आदतें भी बालक सीखता है, अगर संगति अच्छी नहीं हुई तो बालक के व्यवहार पर बुरा प्रभाव भी पड़ता है। समूह में बालक सहभागिता तथा सामाजिक कौशल को सीखता है।
समुदाय (Community ):-
बालक के समाजीकरण में समुदाय अथवा समाज का गहरा प्रभाव होता है। प्रत्येक समाज अथवा समुदाय अपने-अपने विभिन्न साधनों तथा विधियों के द्वारा बालक का समाजीकरण करना अपना परम कर्त्तव्य समझता है।इन साधनों के अन्तर्गत जातीय तथा राष्ट्रीय प्रथाएँ एवं परम्पराएँ, मनोरंजन एवं राजनीतिक विचारधाराएँ, धार्मिक कट्टरता, संस्कृति, कला साहित्य, इतिहास, जातीय पूर्वधारणाएँ, इत्यादि आती हैं।
इन सबके अलावा संस्कृति, भाषा- योग्यता, व्यावसायिक प्रसंग, आर्थिक स्थिति आदि का भी प्रभाव पड़ता है। वर्तमान में बालकों के सामाजीकरण पर टेलिविजन, मीडिया, इंटरनेट, व्हाट्सप आदि का का भी प्रभाव पड़ रहा है, जिससे बालक के मूल्यों, अभिवृत्ति, विश्वास सीधे-सीधे प्रभावित हो रहे हैं।
समाजीकरण में खेल की भूमिका ( Role of Play in Socialization ):-
बालक के शारीरिक एवं सामाजिक विकास में खेल की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। खेल को बालक की रचनात्मक, जन्मजात, स्वतन्त्र, आत्मप्रेरित, स्फूर्तिदायक, स्वलक्षित तथा आनन्ददायक प्रवृत्ति कहा जाता है। खेल-क्रियाओं द्वारा बालक को आत्माभिव्यक्ति का अवसर मिलता है, जिससे उसके समाजीकरण में सहायता मिलती है। खेलों के जरिए बच्चों में समूह के नेतृत्व के गुणों का भी विकास होता है। • खेलों में कुछ विशिष्ट नियमों एवं अनुशासन का पालन करना होता है। यह बालकों को अनुशासित होने में सहायता करता है। खेल में हार-जीत का अनुभव बच्चों में सहनशक्ति का विकास करता है, जो समाजीकरण में अत्यन्त आवश्यक है।सामूहिक खेलों से आदान-प्रदान की भावना का विकास होता है। जब बच्चे एक-दूसरे के साथ मिल-जुल कर खेलते हैं, तो उनमें एकता व सहयोग की भावना पनपती है। यही मिल-जुल कर खेलने की भावना आगे चलकर मिल-जुल कर रहने की भावना में बदल जाती है।
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