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Jean Piaget Concept जीन पियाजे का प्रमुख संप्रत्यय #CTET2024

 

             

Jean Piaget Concept 

जीन पियाजे का प्रमुख संप्रत्यय 

Jean Piaget परिचय

जीन पियाजे (Jean Piaget) एक स्विस मनोवैज्ञानिक थे, जिन्होंने बालक के मानसिक विकास के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका जन्म 9 अगस्त 1896 को हुआ था और वे 16 सितंबर 1980 को निधन हो गए। पियाजे के सिद्धांतों ने शिक्षा, मनोविज्ञान और विकासात्मक अध्ययन के क्षेत्र में एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। ये स्विस मनोवैज्ञानिक थे। मूल रूप से पियाजे जीव वैज्ञानिक थे। जब ये अल्फ्रेड बिने के प्रयोगशाला में बुद्धि परीक्षणों पर साथ कार्य कर रहे थे तभी संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत को भौतिक विकास का सिद्धांत भी कहते हैं। उनके द्वारा प्रतिपादित इस सिद्धान्त की व्याख्या करने से पहले इससे सम्बन्धित कुछ महत्त्वपूर्ण संप्रत्यय की व्याख्या करना उचित है। मानसिक विकास के क्षेत्र में गहरा प्रभाव पड़ा है और उनके सिद्धांतों का पालन आज भी शिक्षा, मनोविज्ञान और बच्चों के विकास के अध्ययन में किया जाता है। उनकी कृतियाँ जैसे “The Child’s Conception of the World” और “The Origins of Intelligence in Children” महत्वपूर्ण पाठ्यक्रमों का हिस्सा बन गई हैं।
 
 
प्रमुख संप्रत्यय
 
1. अनुकूलनः अनुकूलन की प्रवृत्ति बालक में जन्मजात होती है। अनुकूलन का अर्थ है-वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करना। यह दो तरीके से होता है
 
(i) आत्मसातीकरण (Assimilation)
 
(ii) समायोजन ( Accommodation)
 
 
(i) आत्मसातीकरण
जब कोई बालक नई परिस्थिति में होता है तब वह पूर्व स्थापित प्रतिरूप (Pattern) के आधार पर व्यवहार करता है और यदि यह प्रतिरूप (pattern) सफल हो जाता है तो वह इसमें कोई परिवर्तन नहीं लाएगा। यही आत्मसातीकरण है। साधारण शब्दों में कहें तो पूर्व की परिस्थिति में प्रयोग किए गए व्यवहार को नवीन परिस्थिति में प्रयोग करने पर सामंजस्य स्थापित हो जाता है तो उस व्यवहार में कोई परिवर्तन की आवश्यकता नहीं होती है।
 
 
(ii) समायोजनः 
नवीन परिस्थिति में पूर्व किए गए व्यवहार का प्रयोग कर यदि सामंजस्य स्थापित नहीं होता है तब पूर्व किए गए व्यवहार के प्रतिरूप में बदलाव या परिवर्तन बालक करता है इसे ही समायोजन कहते हैं।
 
 
 
 
2. साम्यधारण (Equilibration): 
जब बालक न तो आत्मसातीकरण द्वारा या समायोजन द्वारा सामंजस्य या अनुकूलन स्थापित कर पाता है तब वह आत्मसातीकरण व समायोजन के बीच संतुलन स्थापित करता है इसी प्रक्रियां को साम्यधारण कहते हैं।
 
 
3. संरक्षण (Conservation): 
यह ऐसी प्रक्रिया है 1. जिसके द्वारा बालक में एक तरफ वातावरण के परिवर्तन तथा स्थिरता में अंतर करने की क्षमता और दूसरी तरफ वस्तु के रंग-रूप में परिवर्तन तथा उसके तत्व में परिवर्तन के बीच अंतर करने की क्षमता विकसित होती है।
 
 
4. संज्ञानात्मक संरचना (Cognitive structure): 
जीन पियाजे ने मानसिक योग्यताओं के सेट (set) को संज्ञानात्मक संरचना की संज्ञा दी है। भिन्न-भिन्न उम्र में बालकों की संज्ञानात्मक संरचना में भिन्नता होती है। उदाहरण संज्ञानात्मक संरचना के आधार पर ही एक 10 वर्ष के बालक व 4 वर्ष के बालक के व्यवहार में अंतर समझा जाता है।
 
 
5. मानसिक संक्रिया (Mental Operation): 
जब बालक के सामने कोई समस्या आती है और वह उसके समाधान हेतु चिंतन करने लगता है, तो वह मानसिक संक्रिया करते समझा 7 जाता है।
 
 
6. स्कीम्स (Schemes ): 
व्यवहार के संगठित पैटर्न जिसे बार-बार दोहराया जाता है स्कीम्स कहा जाता है, जैसे- बालक स्कूल जाते वक्त ड्रेस पहनता है या जूता पहनता है। वह उसी तरह पहनता है, चाहे उसका ध्यान उस वक्त वहाँ पर न हो क्योंकि व्यवहार इतना संगठित रूप में हो चुका है कि वह उसी तरह कार्य को संपादित करता है।
 
 
7. स्कीमा (Schema): 
ऐसी मानसिक संरचना जिनका सामान्यीकरण संभव हो।
 
 
8. विकेंद्रण (Decentering): 
यह यथार्थ चिंतन से संबंधित है। बालक किसी समस्या के समाधान के संबंध में किस सीमा तक वास्तविक रूप में सोच विचार करता है। इस संप्रत्यय का विपरीत आत्मकेंद्रण (ego centric) है। प्रारंभ में बालक आत्मकेंद्रण ढंग से सोचता है और बाद में उम्र बढ़ने पर विकेंद्री ढंग से सोचने लगता है।
 
 
9. पारस्परिक क्रिया: 
पियाजे के अनुसार बच्चों में वास्तविकता को समझने तथा उसकी खोज करने की क्षमता न केवल बालकों की परिपक्वता और न ही केवल उनके शिक्षण पर निर्भर करती है बल्कि दोनों की पारस्परिक क्रिया पर आधारित है।
 
 
 
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