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लॉरेंस कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धान्त
लॉरेंस कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धान्त
 
 

लॉरेंस कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धान्त

             Lawrence Kohlberg Theory of
                       Moral Development 
 
 
 
परिचय :- 
 
लॉरेन्स कोहलबर्ग (1927-1987) एक अमेरिकन मनोवैज्ञानिक थे। जीन पियाजे के नैतिक मुद्दों के सिद्धान्त से प्रभावित होकर ही उन्होंने ‘नैतिक न्याय’ को अपने अध्ययन क्षेत्र के रूप में चुना। उन्होंने 10 से 16 वर्ष तक के बालकों से लिए साक्षात्कार से प्राप्त तथ्यों का विश्लेषण करके पियाजे के सिद्धान्त को विस्तारित, परिवर्तित तथा परिष्कृत किया। उन्होंने पाया कि बालक का विकास कुछ निश्चित अवस्थाओं में होता है, जो अवस्थाएँ सार्वभौमिक होती हैं।
 
कोहलबर्ग ने नैतिक विकास के तीन स्तर बताए तथा प्रत्येक स्तर की दो-दो अवस्थाएं बताई हैं। कोहलबर्ग का मानना था कि नैतिक विकास में इन अवस्थाओं का क्रम निश्चित होता है। कोह्लबर्ग ने प्रत्येक स्तर में ‘आत्मन (Self) तथा ‘प्रत्याशाओं’ (Expectation) के संबंध की अभिव्यक्ति की है।
 
 
 
1. प्राक् रूढ़िगत नैतिकता का स्तर या पूर्व परंपरागत स्तर (Pre Conventional Level): 
 
इस स्तर में ऐसे नियमों का पालन किया जाता है जिनका निर्माण अन्य द्वारा किया जाता है। मानक दूसरे लोग ही तय करते है। सही या गलत का कोई विचार नहीं होता ऐसे नियम का पालन पुरस्कार पाने या दंड से बचने के लिए किया जाता है।
 
अवस्था
 
(i) दंड एवं आज्ञाकारिता उन्मुखता (Punishment and obedience orientation) : 
 
इस अवस्था में बच्चों में दंड से दूर रहने की प्रवृत्ति पायी जाती है। बच्चे अपने से बड़े या माता- -पिता के आज्ञा का पालन करते है दंड से बचने हेतु ।
 
(ii)साधनात्मक सापेक्षवादी उन्मुखता (Instrumental relavitist orientation) : 
 
बच्चों में पुरस्कार पाने की अभिप्रेरणा प्रबल होती है, बालक सहभागिता या प्यार तात्कालिक पुरस्कार पाने के लिए छलयोजित व्यवहार भी करते हैं। यहाँ विनिमय या अदला-बदली का भाव देखा जाता है।
 
 

 

 
2. परंपरागत स्तर या रूढ़िगत नैतिकता का स्तर (Conventional level): 
 
बालक दूसरे के नैतिक मानकों को अपने में आंतरीकृत करते हैं। उन मानकों के सही/ गलत का निर्णय करते हैं तथा उस पर अपनी सहमति बनाते हैं तथा अपनी आवश्यकता के साथ-साथ दूसरे की आवश्यकता का भी ध्यान रखते हैं।
 
अवस्था
 
(i) परस्पर एकरूप अभिमुखता
 
  • परंपरा को धारण करना
  • समाज के नियम के अनुरूप व्यवहार करना
  • समाज के नियम के अनुरूप नैतिकता होनी चाहिए
  • समाज से अनुमोदन बच्चे पाना चाहते हैं तथा स्वयं को उत्तम लड़का, अच्छी लड़की कहलाना पसंद करते हैं।
 
 
(ii) अधिकार संरक्षण अभिमुखताः इसमें सामाजिक नियमों से आगे बढ़कर कानूनी नियम भी महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं। अब यह उम्मीद की जाती है कि सामाजिक तथा कानूनी नियम के अनुरूप नैतिकता होनी चाहिए।
 
 
(iii) आचरण स्वतः पूर्ण रूप से नियंत्रित होते हैं। अपने मूल्य को किशोर नैतिक सिद्धांत के परिप्रेक्ष्य में सुनिश्चित करते हैं। नैतिक विकास का यह स्तर नैतिकता का सबसे उच्च स्तर होत है। इसलिए, वास्तविक नैतिकता भी कहते हैं।
 
अवस्था
 
(i) सामाजिक अनुबंध उन्मुखता (Social contract orientation): 
बालक उन वैयक्तिक अधिकार तथा नियम को महत्त्व देते हैं, जो लोकतांत्रिक रूप से मान्य होता है। बहुसंख्यक लोगों के कल्याण के हित को महत्त्व दिया जाता है।
 
(ii) सार्वभौमिक नीतिपरक उन्मुखता (Universal ethical principle orientation): 
इस अवस्था में सार्वभौमिक नैतिक नियम को महत्त्व दिया जाता है। किशोर स्वयं ही नैतिक नियम को महत्त्व देते तथा अपनी निंदा से बचने का प्रयास करते हैं।
 
 
कोहलबर्ग के नैतिक विकास सिद्धांत का शिक्षा में महत्त्व
 
शिक्षक को बालक के व्यवहार को समझने में तथा अवस्था के ज्ञान से शिक्षक को इस बात की जानकारी होती है कि कुछ ऐसे व्यवहार है जो समय के साथ परिवर्तित होंगे उन्हें दंड देने की आवश्यकता नहीं है।
 
शिक्षक बालक में अनुशासन स्थापित करने, कदाचार मुक्त परीक्षा कराने, समाज या राष्ट्र के प्रति -अनुशासित रखने में मदद कर सकते हैं।
 
 
 
 
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