क्रिया और उसके भेद
जिन शब्दों से किसी काम के करने या होने का पता चले, उसे क्रिया कहते हैं। क्रिया के दस भेद होते हैं:
कर्म के आधार पर क्रिया के भेद :-
1. सकर्मक क्रियाः जिन क्रियाओं के साथ कर्म हो अथवा उसकी आवश्यकता हो वे सकर्मक क्रिया कहलाती हैं।
अथवा
जिन क्रियाओं के लिए कर्ता और कर्म अलग-अलग हो, वे सकर्मक क्रियाएँ होती है।
अथवा
जिन क्रियाओं का प्रभाव सीधे कर्म पर पड़े, सकर्मक क्रियाएँ कहलाती हैं, जैसे
- राम फल खाता है (खाना क्रिया के साथ ‘फल’ कर्म है।)
- सीता गीत गाती है ( गाना क्रिया के साथ गीत कर्म है।)
- अश्वनि खाता है। (इसमें खाना क्रिया के लिए कर्म उपस्थित नहीं है, परंतु यह स्पष्ट है कि कुछ खाया जा रहा है। अतः इसमें कर्म की आवश्यकता है।)
अथवा
कर्त्ता और कर्म एक ही हो।
अथवा
क्रिया का प्रभाव कर्ता पर पड़े।
- जैसे-राधा रोती है (कर्म का अभाव है तथा रोती है क्रिया का फल राधा पर पड़ता है।)
- मोहन हँसता है (कर्म का अभाव है तथा हँसता है क्रिया का फल मोहन पर पड़ता है।)
सकर्मक और अकर्मक क्रियाओं के कुछ अन्य उदाहरण
- उसका सिर खुजलाता है। (अकर्मक)
- वह अपना सिर खुजलाता है। (सकर्मक)
- पानी में रस्सी ऐंठती है। (अकर्मक)
- दादा जी रस्सी ऐंठते हैं। (सकर्मक)
- आसमान में पतंग उड़ रही है। (अकर्मक)
- सचिन पतंग उड़ा रहा है। (सकर्मक)
- आकाश में पक्षी उड़ते हैं। (अकर्मक)
- घोड़े मैदान में दौड़ते हैं। (सकर्मक)
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रचना के आधार पर क्रिया के भेद
रचना के आधार पर क्रिया के पांच भेद होते हैं:
- सामान्य क्रिया
- संयुक्त क्रिया
- नामधातु क्रिया प्रेरणार्थक क्रिया
- पूर्वकालिक क्रिया
- सामान्य क्रिया
जब किसी क्रिया का सामान्य रूप से एक बार प्रयोग किया जाए, वह सामान्य क्रिया कहलाती है, जैसे- सचिन नाचा, अरुण हँसा, विभा ने खाना ।
संयुक्त क्रिया
जहाँ एक से अधिक क्रियाओं के प्रयोग द्वारा एक ही क्रिया का होना पाया जाए, वे संयुक्त क्रियाएँ कहलाती है, जैसे :-
- बच्चा नहा रहा है। (यहाँ नहाना, रहना, होना तीन क्रिया शब्दों के द्वारा नहाने की क्रिया हुई ।)
- नेता जी चल बसे। (यहाँ चलना और बसना दो क्रियाशब्दों से मरने की क्रिया का बोध होता है)
- सतीश इधर आ जाओ। ( यहाँ आना और जाना दो क्रिया शब्दों से आने की क्रिया का बोध होता है।)
नामधातु क्रिया (मूल शब्द धातु)
मूल शब्दों में संज्ञा, सर्वनाम व विशेषण आते हैं। मूल शब्दों के साथ प्रत्यय लगाकर जब क्रिया बनाई जाए, वे नामधातु क्रियाएँ कहलाती हैं।
- जैसे- खेल + ना खेलना,
- मार + ना मारना
- लात + इयाना लतियाना
प्रेरणार्थक क्रिया :-
जिन क्रियाओं को कर्ता स्वयं न करके किसी अन्य को करने की प्रेरणा दें, वे प्रेरणार्थक क्रियाएँ कहलाती हैं, जैसे- माँ ने बच्चे को नौकर से नहलवाया। (कहलवाना, मँगवाना, लगवाना आदि)
पूर्वकालिक क्रिया :-
जो क्रियाएँ मुख्य क्रियाओं से पहले संपन्न हुई हो, वे पूर्वकालिक क्रियाएँ कहलाती हैं। इनके साथ ‘कर’ प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है, जैसे-कुत्ता गिरकर मर गया, बच्चा नहाकर सो गया, मैंने आकर पढ़ा दिया। इनके अलावा तीन और क्रियाएँ भी होती हैं:
1. असमापिका क्रिया :-
जो क्रियाएँ वाक्य के अंत में न आकर संज्ञा या सर्वनाम के साथ, पहले प्रयोग की जाए, वे असमापिका क्रियाएँ कहलाती है। जैसे :-
- घोड़ा दौड़ते हुए (असमापिका क्रिया) आया।
- सोता हुआ बच्चा अच्छा लगता है
- कल-कल करता जल बह रहा है।
2. तात्कालिक क्रिया :-
जो क्रियाएँ मुख्य क्रिया के तुरंत पहले संपन्न हुई हो, वे तात्कालिक क्रियाएँ कहलाती है। इसके साथ ‘ही’ प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है । जैसे :-
- बच्चा नहाते ही सो गया।
- मैंने आते ही पढ़ा दिया।
- कुत्ता गिरते ही मर गया।
3. अनुकरणात्मक क्रिया :-
जो क्रियाएँ मूल शब्दों के अनुकरण से बनी हो, वे अनुकरणात्मक क्रियाएँ कहलाती है । जैसे :-
हिनहिनाना, भिन-भिनाना, टिमटिमाना, बुद-बुदाना, फुसफुसाना
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