पाषाण काल
आरम्भिक मानव की जानकारी :-
भारतीय उपमहाद्वीप में जो मानव बीस हजार साल पहले रहा करते थे, उनके साक्ष्य नर्मदा नदी के तट पर मिले हैं। आज हम उन्हें शिकारी खाद्य संग्राहक के नाम से जानते हैं, यह नाम उन्हें भोजन का इंतजाम करने की विधि के आधार पर दिया गया है। सामान्यतः उस समय के लोग भोजन के लिए जंगली जानवरों का शिकार करते थे, मछलियाँ और चिड़ियाँ पकड़ते थे, फल-मूल दाने, पौधे पत्तियाँ इकट्ठा किया करते थे, इसलिए आज हम उन्हें आखेटक खाद्य संग्राहक के नाम से जानते हैं।
मानव सभ्यता की दृष्टि से पाषाण काल को प्रारम्भिक काल माना है। भारत में पाषाणकालीन सभ्यता का साक्ष्य सर्वप्रथम 1863 ई. में एक विद्वान राबर्ट बुस फुट ने पल्लवरम् (मद्रास) से प्राप्त किया। राबर्ट ब्रसफुट को भारतीय प्रागैतिहासिक का पिता कहा जाता है। पाषाण काल को तीन भागों में विभाजित किया गया है:
- पुरापाषाण काल (20,000-12,000 ई.पू.)
- मध्यपाषाण काल (12,000-10,000 ई.पू.)
- नवपाषाण काल (10,000 ई.पू. पहले)
1. पुरा-पाषाण काल :-
पुरा-पाषाण काल दो शब्दों-पुरा यानि ‘प्राचीन’ और पाषाण यानि ‘पत्थर’ से बना है। यह काल मानव इतिहास की 99 प्रतिशत कहानी बताता है। भारत की पुरापाषाण युगीन सभ्यता का विकास- प्लीस्टोसिन या हिम युग से हुआ है। अभी तक भारत में पुरा-पाषाणकालीन मनुष्य के अवशेष कहीं से भी नहीं मिल पाए हैं। जो कुछ भी अवशेष के रूप में मिला है वह है- पत्थर के उपकरण।
मानव द्वारा प्रयोग किये जाने वाले पत्थर के औजारों के रूप, आकार और जलवायु में होने वाले परिवर्तन के आधार पर इसे निम्न तीन चरणों में विभक्त किया जाता है:
1. निम्न पुरापाषाण काल :-
- उपकरणः कुल्हाड़ी, हस्त कुठार, गंडासा
- प्रयुक्त पदार्थ: क्वार्टजाइट एवं बिल्लौरी पत्थर।
- संस्कृतिः चापर-चापिंग पेबुल संस्कृति। हैण्ड एक्स (हस्तकुठार) संस्कृति
- मुख्य स्थल: चतौड़ (राजस्थान), सोन नदी/ सोन घाटी (पाकिस्तानी पंजाब), बेलन घाटी (मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश) और सिंगरौली घाटी (छोटा नागपुर)।
इस समय के मनुष्य नीग्रटो जाति के थे।
2. मध्य पुरा – पाषाण काल :-
- उपकरण: बेधक, खुरचनी, रन्दे व फलक ।
- प्रयुक्त पदार्थः क्वार्टजाइट, चर्ट ।
- संस्कृतिः खुरचनी बेधक संस्कृति ।
- मुख्य स्थल: डीडवाना (राजस्थान), नेवासा (महाराष्ट्र), भीमबेटका (नर्मदा घाटी), तुंगभद्रा घाटी।
यह निएंडरथल मानव का युग था ।
3. उच्च पुरापाषाण काल :-
- उपकरणः तक्षणी, फलक, शल्को और फलकों (ब्लेड) पर बने औजार ।
- अस्थि उपकरणः अलंकृत छड़ें, मत्स्य भाला इत्यादि ।
- प्रयुक्त पदार्थ : फलक एवं तक्षणी संस्कृति
- मुख्य स्थल: कुरनूल (आन्ध्र प्रदेश ) – हड्डी के उपकरण व राख के अवशेष, भीमबेटका (मध्य प्रदेश)-गुफा चित्रकारी के अवशेष प्राप्त हुए।
आधुनिक स्वरूप वाले ‘होमोसेपियंस’ मानव का उदय इस काल में हुआ।
2. मध्य पाषाण काल :-
मध्य पाषाण काल, मानव संस्कृति के उस काल से संबंधित है जो कि नवपाषाण काल के प्रारम्भिक समय में उच्च पुरापाषाण कालीन संस्कृति के बाद विकसित हुआ है। इस काल को पुरापाषाण काल तथा नव पाषाणकाल के बीच का संक्रान्ति काल भी कहते हैं। यह काल लगभग 12000 ई. पू. से प्रारम्भ होकर 10000 ई.पू. के बीच माना जाता है। पुरापाषाण काल में मानव ने अनेक प्रकार के उपकरणों का निर्माण किया तथा कला के क्षेत्र में अत्यधिक प्रगति की परन्तु उसे आर्थिक क्षेत्र में अधिक सफलता प्राप्त नहीं हो सकी। उच्च पुरापाषाण में उसने सामूहिक रूप से विशालकाय पशुओं का शिकार करके अपनी खाद्य समस्या को एक सीमा तक हल कर लिया, तथा बचे हुए समय का सदुपयोग कला के क्षेत्र में व्यतीत किया किन्तु फिर भी पुरापाषाणकालीन मानव प्रकृति ही रहा। इस समय तक मानव इस बात से अनभिज्ञ था कि किस प्रकार कृषि के माध्यम को अधिक खाद्य सामग्री प्रदान व तथा पशुपालन के माध्यम से प्रकृति को अधिक खाद्य सामग्री प्रदान करने के योग्य बनाया जा सकता था। यूरोप तथा उसके आसपास के क्षेत्रों में मानव सभ्यता पुरापाषाण काल के पश्चात एक अन्य संस्कृति में परिवर्तित हो जाती है जिसे मध्य पाषाण काल के नाम से जाना जाता है।
3. नवपाषाण काल :-
मानव के सांस्कृतिक इतिहास में नवपाषाण काल, पाषाण युग का अंतिम चरण है। भौतिक प्रगति की दिषा में इस काल का महत्वपूर्ण स्थान है। यूरोप में प्रातिनूतन काल के अन्त एवं सर्वनूतन काल के आरम्भ में जब भूमि पर वनों का विकास हो रही था। तब वहाँ के उच्च पुरापाषाण काल के मानव बदली हुई परिस्थितियों को अनुकूल बनाने के प्रयास में मध्यपाषाण कालीन संस्कृति में रहे। इसी समय पश्चिम एशिया तथा उत्तरी अफ्रीका में भी महत्वपूर्ण भौगोलिक परिवर्तन हुए। उन परिवर्तनों का प्रभाव मानव के रहन-सहन पर भी पड़ा। इसीलिये इस काल के समाजों ने, जिन्हें आजीविका की पर्याप्त सुविधाएँ नहीं थीं, ऐसे क्रांतिकारी कदम उठाये कि एक नवीन अर्थव्यवस्था में मानव जीवन बदल गया जिसके परिणामस्वरूप एक अधिक उन्नत संस्कृति विकसित हो गई। जिसे पुरातत्ववेत्ता “नवपाषाण काल तथा जाति विज्ञान “बर्बर युग” कहते हैं। इस काल के पूर्व तक मानव अपनी उदरपूर्ति के लिये पूर्णरूपेण प्रकृति पर निर्भर था। इस काल में उसने पहली बार कृषि तथा पशुपालन के द्वारा स्वयं खाद्य पदार्थों का उत्पादन करना प्रारम्भ किया। खाद्योत्पादन से एक सच्ची आर्थिक तथा तकनीकी क्रान्ति का जन्म हुआ। इन साधनों ने समाज के सम्मुख खाद्य समस्या की पूर्ति का एक सम्भावीय विकल्प प्रस्तुत कर दिया। पुरापाषाण काल तथा मध्यपाषाण काल के बर्बर समाजों को प्रकृति कृपा से प्राप्त खाद्यान्न, सीमित मात्रा में मिलते थे। इसी कारण मानव आबादी भी सीमित रहती थी परन्तु नव पाषाणकाल में कम से कम भूमि से अधिक अन्न का उत्पादन करके उसी अनुपात में बढ़ती हुई आबादी का भरण-पोषण किया जा सकता था। इसके अतिरिक्त इस काल में मानव ने वनों से प्राप्त लकड़ी से नाव, मकान तथा कृषि कर्म में आने वाले औजार अर्थात् काष्ठकला, मृदभांडकला तथा कपड़ा बुनना जैसी कलाओं का आविष्कार भी किया। इन सब उद्योगों में उसे नये ढंग के मजबूत उपकरणों की आवश्यकता पड़ी। इसी कारण नवपाषाण काल में मानव ने पाषाण उपकरणों को अभीष्ट आकार देने के लिए फलकीकरण के पश्चात् गढ़ना, घिसना तथा चमकाना जैसी विधियाँ सीखीं। इन उपकरणों के कारण पुरातत्ववेत्ता इस युग को नवपाषाण काल के नाम से पुकारते हैं।
आरंभिक नगर :-
आखेटक खाद्य संग्राहक यह इस महाद्वीप में 20 लाख वर्ष पहले रहते थे इन्हे यह नाम भोजन – करने की विधि के आधार पर दिया गया है भोजन का शिकार का इंतजाम करने की विधि के आधार पर दिया गया हैं भोजन (जनवरो का शिकार, मच्छलियाँ, चिड़ियाँ, फल-फूल, दाने, पौधों पतियाँ, अंडे इत्यादि। आखेटक शिकारियों को कहते हैं। यह लोग अपने काम के लिए लकड़ियों, पत्थर और हड्डी के औजारों का प्रयोग करते थे।
एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने का कारण :
- भोजन की तलाश में इन्हे एक स्थान से दूसरे स्थान जाना पड़ता था।
- चारा की तलाश में या जानवरों का शिकार करते थे हुए एक स्थान से दूसरे स्थान ।
- अलग-अलग मौसम में फल की तलाश पानी की तलाश में।
- इन लोगो ने काम के लिए पत्थरो, लकड़ियों और हड्डियों के औजार बनाए थे।
भीमबेटका :-
मध्य प्रदेश इस पुरास्थल पर गुफाएँ व कंदराएँ मिली है जहाँ लोग रहते थे नर्मदा घाटी के पास स्थित है। भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन जिले में एक पुरापाषाणिक पुरातात्विक स्थल है। जो मध्य प्रदेश राज्य की राजधानी भोपाल के दक्षिण पूर्व में लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। भीमबेटका यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों में से एक है और इस स्थल को सन 2003 में वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया जा चुका है। इस प्रकार की सात पहाड़ियाँ में से एक भीमबेटका की पहाड़ी पर 750 से अधिक रॉक शेल्टर (चट्टानों की गुफ़ाएँ) पाए गए है जोकि लगभग 10 किलोमीटर के क्षेत्र में फैले हुए है। भीमबेटका भारतीय उपमहाद्वीप में मानव जीवन की उत्पति की शुरुआत के निशानों का वर्णन करती है। इस स्थान पर मौजूद सबसे पुराने चित्रों को आज से लगभग 30,000 साल पुराना माना जाता है। माना जाता है कि इन चित्रों में उपयोग किया गया रंग वनस्पतियों का था। जोकि समय के साथ-साथ धुंधला होता चला गया। इन चित्रों को आंतरिक दीवारो पर गहरा बनाया गया था।
कुरनूल गुफा :-
आंध्र प्रदेश यहाँ राख के अवशेष मिले है। इसका इस्तेमाल प्रकाश, मांस, भुनने व् खतरनाक जानवरो को दूर भगाने के लिए होता था। लगभग 12000 साल पहले जलवायु में बड़े बदला आए और इसके परिणामस्वरूप कई घास वाले मैदान बनने लगे और हिरण, बारहसिंघा, भेड़, बकरी, गाय जैसे जानवरो की संख्या में बढ़ोतरी हुई और मछली महत्वपूर्ण स्त्रोत बना।
प्रारंभिक पशुपालक व कृषक के साक्ष्य :-
- बुर्जहोम- कश्मीर
- मेहरगढ़ – पाकिस्तान का
- चिरांद – बिहार
- कोल्डिहवा – मध्य प्रदेश
- दाओजली- असम
मेहरगढ़ :-
मेहरगढ़ में बस्ती का आरंभ 8000 साल पहले हुआ। यह स्थान ईरान जाने वाले रस्ते में महत्वपूर्ण था। यह बोलन दर्रे के पस एक हरा भरा समतल स्थान है। इस इलाके में सबसे पहले जौ, गेहूँ, भेड़, बकरी पलना सीखा यहाँ चौकोर तथा आयताकार घरो के अवशेष भी मिले है। मेहरगढ़ में कब्रों के स्थ सामान भी रखे जाते थे एक कब्र में मानव के साथ एक बकरी भी दफनाई गई है।
बुर्जहोम :-
बुर्जहोम (वर्तमान कश्मीर) के लोग गड्ढे के नीचे घर बनाते थे जिन्हें गर्तवास कहा जाता है। पुरातत्त्वविदों को झोपड़ियों के अन्दर और बाहर दोनों ही स्थानों पर आग जलाने की जगहें मिली हैं। ऐसा लगता है कि लोग मौसम के अनुसार घर के अन्दर या बाहर खाना पकाते होंगे।
दाओजली हेडिंग :-
दाओजली हेडिंग पुरास्थल जो कि चीन और म्यांमार की ओर जाने वाले रास्ते में ब्रह्मपुत्र की घाटी की एक पहाड़ी पर है। यहाँ से खरल और मूसल जैसे पत्थरों के उपकरण मिले हैं। इससे पता चलता है कि यहाँ लोग भोजन के लिए अनाज उगाते थे। साथ ही यहाँ से जेडाइट पत्थर भी मिला है। संभवतः यह पत्थर चीन से आया होगा। इसके अतिरिक्त इस पुरास्थल से काष्ठाश्म (अति प्राचीन लकड़ी, जो सख्त होकर पत्थर बन गई हैं) के औजार और बर्तन भी मिले हैं।
चिराँद :-
- बिहार प्रान्त का चिराँद नामक पुरास्थल नवपाषाण कालीन एक मात्र ऐसा पुरास्थल है जहाँ से हड्डी के उपकरण पाये गये हैं जो मुख्य रूप से हिरण के सींगों के हैं।
- इलाहाबाद के कोल्डिहवा से 6000 ई.पू. के चावल के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
- कुम्भकारी के प्रमाण सर्वप्रथम नवपाषाण युग से मिलते हैं जो इस युग में मिले काला धूसर तथा मन्दवर्ण/मृदभांड से सिद्ध होता है। बुर्जहोम के निवासी मृदभाण्डों का उपयोग करते थे।