NCF 2005: NCF का full form है National Curriculum Framework (राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा NCF 2005). प्रोफेसर कृष्ण कुमार जो केंद्रीय शिक्षा संस्थान (Central Institute of Education), दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाते थे। 2004 से 2010 तक एनसीईआरटी NCERT के निदेशक के रूप में, उन्होंने राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा के प्रारूपण का निरीक्षण किया।
बच्चों को क्या और कैसे पढ़ाया जाए? What and How to Teach Children?
NCF 2005 ( राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा ) इन्हीं प्रश्नों पर ध्यान केन्द्रित कराने हेतु एक अति महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है कि बच्चो को कैसे पढ़ाया जाए। इसका मुख्य सूत्र है Learning Without Burden (शिक्षा बिना बोझ के) सामाजिक न्याय और समानता के संवैधानिक मूल्यों पर आधारित एक धर्मनिरपेक्ष, समतामूलक और बहुलतावादी समाज के आदर्श से प्रेरणा लेते हुए इस दस्तावेज में शिक्षा के कुछ व्यापक उद्देश्य चिह्नित किए गए हैं। इनमें शामिल हैं, विचार और कर्म की स्वतन्त्रता, दूसरों की भलाई और भावनाओं के प्रति संवेदनशीलता, नई स्थितियों का लचीलेपन और रचनात्मक तरीके से सामना करना, लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में भागीदारी की प्रवृत्ति और आर्थिक प्रक्रियाओं तथा सामाजिक बदलाव में योगदान देने के लिए काम करने की क्षमता। अगर शिक्षा को जीने के लोकतान्त्रिक तरीकों को सुदृढ़ करना है तो उसे स्कूल में जाने वाली पहली पीढ़ी की उपस्थिति का भी ध्यान रखना ही होगा जिसका स्कूल में बने रहना उस संविधान संशोधन के चलते अनिवार्य हो गया है जिसने आरम्भिक शिक्षा को हर बच्चे का मौलिक अधिकार बना दिया है। संविधान के इस संशोधन से हम पर यह जिम्मेदारी आ गई है कि हम सारे बच्चों को जाति, धर्म सम्बन्धी अन्तर, लिंग और असमर्थता सम्बन्धी चुनौतियों से निरपेक्ष रहते हुए स्वास्थ्य, पोषण और समावेशी स्कूली माहौल मुहैया कराएँ जो उनको शिक्षा ग्रहण में मदद पहुँचाएँ तथा उन्हें सशक्त बनाएँ। हमारे शैक्षिक उद्देश्यों और शिक्षा की गुणवत्ता में आज गहरी विकृति आ गई है, इसका प्रमाण यह तथ्य है कि शिक्षा बच्चों और उनके माँ-बाप के लिए तनाव और बोझ का कारण बन गई है ।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा का परिप्रेक्ष्य Perspective NCF 2005
इस भाग में NCF राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा का परिचय, पश्चावलोकन, मार्गदर्शक सिद्धान्त, गुणवत्ता के आयाम, शिक्षा का सामाजिक सन्दर्भ तथा शिक्षा का लक्ष्य जैसे महत्त्वपूर्ण विषयों का समावेश है। इस भाग के महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं :-
- ‘शिक्षा बिना बोझ के’ की सूझ के आधार पर पाठ्यचर्या के बोझ को कम करना ।
- पढ़ाई को रटंत प्रणाली से मुक्त रखते हुए स्कूली ज्ञान को बाहरी जीवन से जोड़ा जाना चाहिए।
- पाठ्यक्रम का इस प्रकार संवर्द्धन किया जाना जिससे कि बच्चों के चहुँमुखी विकास के अवसर उपलब्ध हो सकें।
- इस तथ्य को समझना कि शिक्षा के लक्ष्य, समाज में तत्कालीन महत्त्वकांक्षाओं व जरूरतों के साथ शाश्वत मूल्यों तथा समाज के सरोकारों के साथ वृहद् मानवीय आदर्शों को भी प्रतिबिम्बित करते हैं।
- ऐसे नागरिक वर्ग का निर्माण करना, जो लैंगिक न्याय, मूल्यों, लोकतान्त्रिक व्यवहारों, अनुसूचित जनजातियों और विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों की समस्या की और आवश्यकताओं के प्रति संवेदन शील हो तथा उनमें राजनीतिक एवं आर्थिक प्रक्रियाओं में भाग लेने की क्षमता हो।
सीखना और ज्ञान Learning and Knowledge
इस भाग में सक्रिय विद्यार्थियों की प्राथमिकता, विद्यार्थी को सन्दर्भ में रखना, विकास और सीखना तथा पाठ्यचर्या एवं व्यवहार के लिए निहितार्थ जैसे विषयों का समावेश है। इस भाग के महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं :-
- समाज में मिलने वाली अनौपचारिक शिक्षा, विद्यार्थी में अपना ज्ञान स्वयं सृजित करने की स्वाभाविक क्षमता को विकसित करती है।
- बाल केन्द्रित शिक्षा का अर्थ है बच्चों के अनुभवों, उनके स्वरों और उनकी सक्रिय सहभागिता को प्राथमिकता देना।
- प्राथमिक स्कूल से विश्वविद्यालय तक शारीरिक एवं भावात्मक सुरक्षा प्रत्येक प्रकार से सीखने की आधार शिला है।
- बच्चे उसी वातावरण में जल्दी सीखते हैं जिसमें उन्हें लगे कि उन्हें महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है।
- सभी बच्चों की स्वतन्त्र खेलों, अनौपचारिक व औपचारिक खेलों, योग आदि की गतिविधियों में सहभागिता उनके शारीरिक तथा मनो-सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है।
- संज्ञान का अर्थ है, कर्म व भाषा के माध्यम से स्वयं और दुनिया को समझना।
- आस-पास के वातावरण, प्रकृति, चीजों व लोगों से कार्य व भाषा दोनों के माध्यम से अन्तःक्रिया करना, सीखने की प्रक्रिया का अभिन्न अंग है।
- शिक्षक एक उत्प्रेरक है, जो विद्यार्थियों को अभिव्यक्ति के लिए और ज्ञानार्जन के क्रम में व्याख्या और विश्लेषण करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
- समावेशी कक्षा के शिक्षक की पाठ योजना और इकाई योजना को इस ओर इंगित करना चाहिए कि वह बच्चों की आवश्यकतानुसार कक्षा में जारी गतिविधि को बदल सके।
- विवेचनात्मक शिक्षाशास्त्र, विभिन्न मुद्दों पर उनके राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा नैतिक पहलुओं के सन्दर्भ में आलोचनात्मक चिन्तन का अवसर प्रदान करता है।
- बच्चों की बुनियादी क्षमताएँ उनके बौद्धिक विकास, मूल्यों और कौशलों के लिए एक वृहत् आधार तैयार करती है।
- अवलोकन, अन्वेषण, विश्लेषणात्मक विमर्श तथा ज्ञान की विषय-वस्तु विद्यार्थियों की सहभागिता के प्रमुख क्षेत्र हैं।
पाठ्यचर्या के क्षेत्र, स्कूल की अवस्थाएँ और आकलन Scope of Curriculum, Stages of School and Assesment
इस भाग में भाषा, गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, कला शिक्षा, स्वास्थ्य और शारीरिक शिक्षा, काम और शिक्षा, आवास और सीखना अध्ययन और आकलन की योजनाएँ तथा आकलन और मूल्यांकन जैसे विषयों का समावेश है।
इस भाग के महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं :-
- बहुभाषिता एक ऐसा संसाधन है जिसकी तुलना सामाजिक तथा राष्ट्रीय स्तर पर किसी अन्य राष्ट्रीय संसाधन से की जा सकती है।
- द्विभाषी/बहुभाषी क्षमता संज्ञानात्मक वृद्धि, विस्तृत, चिन्तन, सामाजिक सहिष्णुता और बौद्धिक उपलब्धियों के स्तर को बढ़ाती है।
- भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के बच्चों की प्राथमिक स्तर पर शिक्षा व्यवस्था उनकी मातृभाषा में करना उनके संज्ञानात्मक विकास के लिए आवश्यक है।
- गणितीय अवधारणाओं को विभिन्न तरीकों से निरूपित करना गणितीय सामर्थ्य को बढ़ाता है।
- प्रत्यक्षीकरण तथा निरूपण जैसे कौशलों के विकास में गणित बहुत सहायक सिद्ध होता है।
- गणित शिक्षण का मुख्य लक्ष्य तार्किक ढंग से सोचने, अमूर्तनों का निर्माण करने तथा संचालित करने की योग्यता का विकास करने से होना चाहिए।
- विज्ञान गत्यात्मक और निरन्तर परिवर्द्धित ज्ञान का एक ऐसा भण्डार है जिसमें अनुभव के नवीन क्षेत्रों को शामिल किया जाता है।
- विज्ञान की शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे शिक्षार्थी तरीकों एवं प्रक्रियाओं का बोध करने में सक्षम हो सके।
- उच्च प्राथमिक स्तर पर शिक्षार्थियों को विज्ञान शिक्षण के अन्तर्गत वैज्ञानिक अवधारणाओं को मुख्यतः गतिविधियों एवं प्रयोगों द्वारा ही समझाना चाहिए।
- सामाजिक विज्ञान शिक्षण के अन्तर्गत एक ऐसी पाठ्यचर्चा का होना आवश्यक है, जो शिक्षार्थियों में समाज के प्रति आलोचनात्मक समझ का विकास कर सके।
- सामाजिक विज्ञान शिक्षण में उन विधियों का उपयोग किया जाना चाहिए, जो शिक्षार्थियों में रचनात्मक, सौन्दर्यबोध तथा आलोचनात्मक समझ बढ़ाने के साथ-साथ उनके अतीत तथा वर्तमान के मध्य सम्बन्ध बनाने में सहायक हो।’
- हस्त शिल्प एक उत्पादन प्रक्रिया है, जो समावेशी शिक्षा के क्षेत्र में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सिद्ध होता है।
- स्वास्थ्य और स्वच्छता पर आधारित शिक्षा का सम्बन्ध बच्चों के दैनिक जीवन के व्यावहारिक पहलुओं से सम्बन्धित होना चाहिए।
- शान्ति के लिए शिक्षा, नैतिक विकास के साथ-साथ उन मूल्यों, दृष्टिकोणों तथा कौशलों के पोषण पर बल देती है, जो प्रकृति और मानव के बीच सामंजस्य बिठाने के लिए आवश्यक है।
- शिक्षार्थियों के नैतिक विकास हेतु यह आवश्यक है कि उन्हें ऐसी सीख दी जाए जिसके माध्यम से वे सही क्या है ?, गलत क्या है? दया क्या है? आदि प्रश्नों के उत्तर खोज सकें।
- आकलन का मुख्य प्रयोजन सीखने-सिखाने की प्रक्रियाओं एवं सामग्री में सुधार लाना तथा उन लक्ष्यों पर पुनर्विचार करना है, जो स्कूल के विभिन्न चरणों के लिए तैयार किए जाते हैं।
- स्वयं सीखने वाली गतिविधियाँ बच्चों के सतत् गुणात्मक तथा अवलोकनात्मक आकलन का आधार होती है।
- पूर्व प्राथमिक स्तर पर आकलन बच्चों की दैनिक गतिविधियों, स्वास्थ्य और शारीरिक विकास पर आधारित होना चाहिए।
विद्यालय तथा कक्षा का वातावरण Environment of School and Class
इस भाग में भौतिक वातावरण, सक्षम बनाने वाले वातावरण का पोषण, सभी बच्चों की भागीदारी, अनुशासन और सहभागी प्रबन्धन, अभिभावकों और समुदाय के लिए स्थान, पाठ्यचर्चा के स्थल और अधिगम के संसाधन, समय तथा शिक्षक की स्वायत्तता और व्यावसायिक स्वतन्त्रता जैसे विषयों का समावेश है। इस भाग के महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं
- चेतन और अचेतन दोनों रूप से बच्चे हमेशा विद्यालय के भौतिक वातावरण से निरन्तर अन्तःक्रिया करते रहते हैं। कक्षा का आकार शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करने वाला एक महत्त्वपूर्ण कारक है। किसी भी अवस्था में शिक्षक तथा शिक्षार्थियों का अनुपात 1:30 से अधिक होना वांछित नहीं है।
- स्कूल की संस्कृति ऐसी होनी चाहिए कि शिक्षार्थियों की अस्मिता को उजागर करने के साथ-साथ ऐसा वातावरण तैयार करे जिसमें प्रत्येक शिक्षार्थी की रुचि और क्षमताओं के विकास को बढ़ावा मिल सके।
- बच्चों की सक्रिय भागीदारी, हमारी संस्कृति के समतामूलक, लोकतान्त्रिक धर्म निरपेक्षी और समानता के मूल्यों में नई जान डालने जैसे लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु अत्यन्त आवश्यक है।
- अनुशासन ऐसा होना चाहिए जो कार्य के सम्पन्न होने में मदद करे साथ ही बच्चों की सक्षमता को बढ़ाए।
- यह आवश्यक है कि सत्र के आरम्भिक और अन्तिम दो या तीन दिन स्कूल की वार्षिक योजना तैयार किए जाने हेतु रखने चाहिए जिसमें ऐसी गतिविधियों की स्वतन्त्रता हो जिनमें शिक्षार्थी सक्रिय रूप से भाग ले सकें।
व्यवस्थागत सुधार (Organised Amendment) NCF
इस भाग में गुणवत्ता को लेकर सरोकार, पाठ्यचर्या नवीकरण के लिए शिक्षक-शिक्षा, परीक्षा सुधार, काम केन्द्रित शिक्षा, विचार और व्यवहार में नवाचार तथा नई साझेदारियाँ जैसे विषयों का समावेश है। इस भाग के महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं :-
- बच्चों की शिक्षा व्यवस्था में विकासात्मक मानकों का प्रयोग किया जाना चाहिए, जो अभिप्रेरणा तथा क्षमता की समग्र वृद्धि की पूर्व मान्यता पर आधारित हों।
- अधिगम को सहभागिता की उस प्रक्रिया के रूप में देखना चाहिए जो सहपाठियों और वृहत् सामाजिक समुदाय या पूरे राष्ट्र के साझे सामाजिक सन्दर्भों के बीच होती है।
- पाठ्यचर्या को इस प्रकार निर्मित करना चाहिए जिसमें शिक्षक शिक्षार्थियों को, खेलते तथा काम करते हुए प्रत्यक्ष रूप से अवलोकित कर सके।
- शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रमों में समकालीन भारतीय समाज के मुद्दों और चिन्ताओं, उसके बहुलतावादी स्वभाव और पहचान, लिंग, समता, जीविका और गरीबी जैसे विषयों का समावेश होना चाहिए।
- काम केन्द्रित शिक्षा का अर्थ है बच्चों में उनके परिवेश, प्राकृतिक-संसाधनों तथा जीविका से सम्बन्धित ज्ञान आधारों, सामाजिक अन्तर्दृष्टियों तथा कौशलों को विद्यालयी व्यवस्था में उनकी गरिमा और मजबूती के स्रोतों में बदलना।