प्रतिभाशाली, सृजनात्मक तथा विशेष आवश्यकता वाले बालक Talented, Creative and Children with Needs
प्रतिभाशाली बालक ( Talented Children) :-
प्रतिभाशाली बालकों को ‘विशिष्ट बालकों’ की श्रेणी में इसलिए रखा गया है; क्योंकि वे उच्च बुद्धि एवं अभिक्षमताओं (Aptitudes) से संपन्न होते हैं तथा ऐसे बालक, जिन की बुद्धिलब्धि 120 से ऊपर होती है, प्रतिभाशाली बालक होते हैं, यथार्थ रूप से 2% से अधिक बालक विद्यालय में इस श्रेणी में नहीं होते, किंतु इसमें कुछ बालक ऐसे हो सकते हैं जिनकी बुद्धि लब्धि 170 और 180 भी हो सकती है। इस योग्यता का बालक भी हमारे सामने एक समस्या का रूप ले सकते हैं; क्योंकि उनकी स्वयं की समस्याएँ बड़ी जटिल होती है। साथ-ही-साथ उनके लिए किस प्रकार के विद्यालय का संगठन तथा प्रबंध हो, यह निर्णय करना भी कठिन है।इस प्रकार के बालक एक साधारण बालक से बहुत अधिक योग्य होते हैं। वे लोग उस कार्य को बहुत शीघ्रता से कर सकते हैं जो एक साधारण बालक नहीं कर सकता। इसके साथी ही प्रतिभाशाली बालकों को यदि यथा एवं उचित समय निर्देशन न प्रदान किया जाए तो वे अपनी उत्तम बुद्धि का अनुचित प्रयोग करने लगते हैं तथा अनुशासनहीन गुटबंदी में सम्मिलित होकर, समाज कार्य करने लगते हैं।
प्रतिभाशाली बालकों की विशेषताएँ (Characteristics of Talented Children) :-
प्रतिभाशाली बालकों में कई प्रकार की विभिन्नताएँ होती हैं। प्रतिभाशाली बालकों के समूह में समरूपता होना आवश्यक नहीं। इन प्रतिभाशाली बालकों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित गुणों से संबंधित होती हैं
1. शारीरिक विशेषताएँ :-
(i) शारीरिक विकास तीव्र गति से होता है और यह विकास कद, भार, चलना, बोलना आदि के रूप में होता है।
(ii) विशिष्ट बुद्धि वाले बच्चों में उत्तम स्वास्थ्य होता है और शारीरिक दोष बहुत कम होते हैं।
(iii) इन बच्चों की ज्ञान इंद्रियाँ प्रखर होती हैं।
(iv) प्रतिभाशाली बालकों में किशोरावस्था के लक्षण शीघ्र दिखाई देते हैं।
2. संवेगात्मक विशेषताएँ :-
(i) संवेगात्मक रूप से प्रतिभाशाली बालक स्थिर और समायोजन से युक्त होते हैं।
(ii) सामान्य तथा प्रसन्न रहते हैं और समस्याओं व कठिनाइयों को स्वतंत्र रूप से हल करना चाहते हैं।
(iii) नवीन व्यक्तियों, स्थानों और परिस्थितियों में ये बालक शीघ्र ही समायोजन कर लेते हैं।
(iv) इसका चरित्र और व्यक्तित्व दूसरे बालकों से श्रेष्ठ होता है।
(v) ये बालक विनोदप्रिय होते हैं।
(vi) ये आत्मविश्वासी एवं जोखिम उठाने वाले होते हैं।
(vii) इस प्रकार ये बालक सामाजिक दृष्टि से भी सुदृढ़ होते हैं।
3. सामाजिक विशेषताएँ :-
(i) ये बालक सामाजिक रूप से अधिक परिपक्व तथा सर्वप्रिय होते हैं।
(ii) इनमें उत्तरदायित्व की भावना, ईमानदारी और विश्वसनीयता पायी जाती है।
(iii) इनमें नेतृत्व की विशेषताएँ बहुत होती है।
(iv) ऐसे बालक घर, स्कूल तथा समुदाय के अन्य कार्यों की जिम्मेदारी लेना बहुत पसंद करते हैं।
(v) अनुशासनपालक व एक-दूसरे को सम्मान करने वाले होते हैं।
(vi) ऐसे बालक लोकप्रिय व्यक्तित्व वाले होते हैं।
4. संवेगात्मक विशेषताएँ :-
(i) नियमित रूप से विद्यालय में उपस्थित रहते हैं।
(ii) बौद्धिक रूप से सर्वश्रेष्ठ होते हैं तथा शैक्षिक उपलब्धि को बहुत महत्त्व देते हैं।
(iii) निर्धारित पाठ्य-पुस्तकों के अतिरिक्त सहायक पुस्तकों, समाचार पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ने में रुचि लेते हैं।
(iv) ऐसे बालक शिक्षा के प्रत्येक क्षेत्र में अधिक उपलब्धियाँ प्राप्त करते हैं।
(v) पुरस्कार और छात्रवृत्तियाँ जीतने में भी प्रतिभाशाली बालक सबसे आगे रहते हैं।
(vi) अपेक्षाकृत कम समय और परिश्रम में अधिक अंक प्राप्त करते हैं।
(vii) अन्य प्रतिभाशाली बालकों से प्रतिस्पर्धा रखते हैं।
5. बौद्धिक विशेषताएँ :-
(i) प्रतिभाशाली बालक मानसिक रूप से सामान्य बालकों से श्रेष्ठ होते हैं।
(ii) इनमें सीखने, समझने, स्मरण तथा तर्क करने की विशेष क्षमता होती है।
(iii) ऐसे बालकों में ज्ञान की जिज्ञासा, मौलिकता तथा दृढ़ इच्छा शक्ति पायी जाती है।
(iv) उत्तम कल्पनाशक्ति एवं अंर्तदृष्टि होती हैं।
(v) तर्क करने की योग्यता सामान्य बालकों से अधिक होती हैं।
(vi) ऐसे बालकों में अवधान का विस्तार भी अधिक होता है।
(vii) ध्यान केंद्रित करने की व्यापक क्षमता होती. हैं।
(viii) इनका अधिगम तीव्र गति से होता है और सरलता से होता है।
(ix) ये स्पष्टवादी, फुर्तीले और श्रेष्ठ आत्म अभिव्यक्ति वाले होते हैं।
(x) एक या एक से अधिक क्षेत्रों में विशिष्ट योग्यता होती है।
6. नकारात्मक विशेषताएँ :-
प्रतिभाशाली बालकों में सामाजिक दृष्टि से कुछ नकारात्मक विशेषताएँ भी देखने को मिलती हैं। इन नकारात्मक विशेषताओं का विकास संभवतः उनकी प्रतिभा का समुचित पोषण एवं उपयोग न करने के कारण होता हैं। कुछ नकारात्मक विशेषताएँ निम्न हैं :-
1. प्रतिभाशाली बालक कई कार्यों में लापरवाह हो जाते हैं।
2. कभी-कभी ईर्ष्यालु एवं अंहकारयुक्त व्यवहार करने लगते हैं।
3. ऐसे बालकों की रुचि दूसरों की आलोचना में अधिक होती है।
4. कभी-कभी आवश्यकता से अधिक बोलना तथा हठ करना।
5. पाठ्यक्रम को सरल समझने के कारण पढ़ने-लिखने में आलस्य प्रदर्शित करते हैं।
6. इस श्रेणी के बालक नटखट और शोर मचाने वाले होते हैं।
प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा :-
1. प्रतिभाशाली बालकों के लिए अपने को व्यवस्थापित करना कठिन होता है क्योंकि पाठशाला की परिस्थितियाँ एक विशेष प्रकार की होती है। हमें प्रतिभाशाली बालक को पढ़ने की तीव्र गति के लिए व्यवस्था करना चाहिए। प्रतिभाशाली बालकों के लिए विशेष कक्षाओं की भी व्यवस्था की जानी चाहिए।
2. सभी सामान्य और प्रतिभाशाली बालकों को सीखने के लिए समान अवसर प्रदान किए जाने चाहिए। सभी को अपनी-अपनी प्रतिभा के विकास की पूरी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।
3. प्रतिभाशाली बालकों को कक्षा के बाहर की उन क्रियाओं में भी भाग लेना चाहिए जो उनकी शिक्षा से संबंधित नहीं होतीं हैं। यह आशा की जा सकती है कि प्रतिभाशाली बालक उन क्रियाओं का नेतृत्व करे, किंतु अध्यापक को उन्हें नेतृत्व पद अपनी स्वयं की इच्छा के आधार पर नहीं देना चाहिए, नहीं तो दूसरे क्षेत्र इनसे ईर्ष्या करने लगेंगे।
4. जो बालक विशेष रूप से प्रतिभाशाली होते हैं उनको अति विशेष ध्यान की आवश्यकता होती है। अध्यापक उनका व्यक्तिगत रूप से ध्यान रख सकता है। इस प्रकार उनकी विशेष प्रतिभा को निश्चित व उचित दिशा मिल जाती है।
5. प्रतिभावान के लिए किसी भी झूठी प्रेरणा की आवश्यकता नहीं होती। यदि विषय-सामग्री को बौद्धिक रूप से उनके समक्ष उपस्थित किया जाता है तब उनमें बौद्धिक उत्सुकता सदैव बनी रहती हैं।
6. प्रतिभाशाली बालकों की शैक्षिक उन्नति के लिए उन्हें शीघ्रता से या समय से पहले एक कक्षा से दूसरी कक्षा में प्रोन्नति नहीं देनी चाहिए इससे इन बालकों और नई कक्षा के बालकों की शारीरिक, सामाजिक और मानसिक परिपक्वता में अंतर बढ़ जाता है। ऐसा करने पर प्रतिभाशाली बालकों का सामाजिक समायोजन बिगड़ जाता है।
7. प्रतिभाशाली बालक की शिक्षा उसके अध्ययन और उसकी प्रतिभा पर आधारित होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में उसकी विशेष शिक्षा प्रतिभाशाली केंद्रित होनी चाहिए। अन्यथा उनकी प्रतिभा व्यर्थ चली जाएगी।
आज विश्व के अनेक देश तथ्य से परिचित हो चुके हैं और परिणामस्वरूप इन देशों में प्रतिभाशाली बच्चों को उचित शिक्षा देने और आगे बढ़ने के विशेष अवसर प्रदान किए जा रहे हैं।
प्रतिभाशाली बालकों के शिक्षकों के गुण :-
प्रतिभाशाली बालकों को पढ़ाने के लिए शिक्षकों की नियुक्ति बड़ी सावधानी से करनी चाहिए। चुने हुए शिक्षकों को विशेष शिक्षा की विधियों एवं तकनीकों में प्रशिक्षित होना चाहिए अथवा चुनाव के पश्चात् उन्हें प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। सर्वोत्तम शिक्षक के द्वारा ही प्रतिभाशाली बालकों की प्रतिभा को निखारा जा सकता हैं।
‘अमेरिकन एजुकेशनल पॉलिसी कमीशन’ ने प्रतिभाशाली बालकों के शिक्षकों की विशेषताओं की निम्नलिखित सूची को प्रस्तुत किया है –
5. बालकों को उत्साहित एवं प्रेरित करने की क्षमता होनी चाहिए।
6. विनम्र स्वभाव होना चाहिए
7. व्यक्तिगत एवं सामाजिक दायित्व का बोध होना चाहिए
8. ईर्ष्यामुक्त स्वभाव होना चाहिए
9. आलोचना के प्रति अधिक संवेदनशील न होना ।
हम जानते हैं कि सर्वगुण संपन्न शिक्षकों को प्राप्त करना कितना कठिन है, किंतु इन गुणों में से अधिकांश से युक्त शिक्षकों का मिलना असंभव भी नहीं है।
सृजनशील बालक :-
ऐसे बालक जो कोई मौलिक विचार या व्याख्या प्रस्तुत करें सृजनशील बालक कहलाते हैं। साधारण शब्दों में कह सकते हैं कि जो बालक नवीन वस्तुओं की रचना, नवीन विचार या समस्या समाधान के नवीन तरीके ढूँढ़ते हैं जिनसे समस्या का समाधान हो सके उन्हें सृजनशील बालक कहा जाता है।
सृजनात्मक बालक की विशेषताएँ :-
सृजनशील बालक के विचार में वास्तविकता व व्यवहारशीलता नजर आती है।
ये बालक कल्पना को मूर्त रूप देने में प्रयासरत रहते हैं। यही वजह है कि वो इसमें सफल भी होते हैं।
उच्च महत्त्वाकांक्षी तथा लक्ष्य केंद्रित होते हैं।
जिज्ञासु प्रवृत्ति के होते हैं तथा कार्य करते वक्त जोखिम लेने से भी नहीं डरते हैं।
मौलिकता तथा नवीनता का गुण होता है व उच्च बौद्धिक क्षमता वाले होते हैं।
अपनी क्षमता को पहचानकर कार्य करना चाहते हैं; लेकिन कई बार परिस्थितियाँ जब साथ नहीं देतीं तो ये कुंठित भी हो जाते हैं। उदहारण वशिष्ठ नारायण सिंह, जो गणित के एक प्रश्न को कई तरीके से हल करते थे लेकिन परिस्थितियों ने उनका साथ नहीं दिया जिससे वे मानसिक समस्याओं से घिर गए।
सृजनशील बालकों के लिए शिक्षा व्यवस्था :-
शिक्षक को तत्पर होकर सृजनशील बालकों की पहचान करनी चाहिए ताकि उनकी योग्यता व क्षमता का सही से विकास हो सके जिससे न सिर्फ उन छात्रों का बल्कि समाज का भी फायदा हो सके ।
शिक्षक को खुद ऐसे बालकों के लिए प्रेरणा स्रोत का कार्य करना चाहिए।
शिक्षक को भी सृजनशील कार्य करके बालकों के सामने प्रस्तुत करना चाहिए तथा ऐसे अवसर उपलब्ध कराने चाहिए जिससे उनके अंदर छिपी सृजनात्मकता बाहर आ सकें।
शिक्षक छात्रों के समक्ष ऐसी समस्या या परिस्थितियाँ उत्पन्न करते रहे जो छात्रों के लिए नवीन हो । इनके समाधान के क्रम में ही छात्रों में कई मौलिक विचार या व्याख्याएँ सामने आ सकती हैं।
छात्र के सृजनशीलता को बढ़ावा देना चाहिए जबकि कई बार ऐसा देखा गया है कि शिक्षक छात्रों को सिर्फ विषयवस्तु पर केंद्रित रखना चाहते हैं। अन्य क्रियाकलापों को महत्त्वहीन समझते हैं। छात्र यदि कविता, कहानी, चित्रकला, हस्तकला आदि में रुचि लेता है तो उसे बढ़ावा देना चाहिए।