पिछड़े, विकलांग तथा मानसिक रूप से पिछड़े बालक (Backward Disabled and Mentally Retarded Children) #ctet #cdp #pedagogy
पिछड़ा बालक :-
पिछड़े बालक वे बालक होते हैं जो अपने समान उम्र के जो कक्षा बालकों से कम उम्र के बालकों के समान शैक्षिक योग्यता रखते हैं। उदाहरण :-
रोहित नामक एक छात्र, 8 में पढ़ता है तथा उसकी उम्र 16 वर्ष है वहीं 16 वर्ष के छात्र लगभग 10वीं की परीक्षा पास कर चुके होते हैं ऐसे में रोहित शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ा बालक हुआ। सामान्यतः शैक्षिक पिछड़ापन भी दो प्रकार का पाया जाता है- सामान्य पिछड़ापन, विशिष्ट पिछड़ापन ।
- सामान्य पिछड़ापन :- से तात्पर्य यह है कि बालक जिस कक्षा में अपनी उम्र के अनुसार होना चाहिए उस कक्षा के सभी विषयों में शैक्षिक उपलब्धि कम हो अर्थात् सभी विषयों में पिछड़ा हो।
- विशिष्ट पिछड़ापन :- से तात्पर्य यह है कि बालक अपनी उम्र के अनुसार की कक्षा में किसी एक या दो विषयों में पिछड़ा हुआ हो ।
पिछड़ेपन की विशेषताएँ Characteristics of Backward Children:-
- पिछड़े बालक सामान्य बालक अपेक्षाकृत मंद गति से सीखते हैं की।
- पिछड़े बालकों का सामान्य बालक के साथ समायोजन भी ठीक से नहीं हो पाता है। इसी कारण से पिछड़े बालकों में कक्षा में आपस में अधिक भिन्नता देखी जाती है।
- पिछड़े बालक किसी समस्या पर सूक्ष्म रूप से चिंतन नहीं कर सकते हैं।
- इन बालकों में एकाग्रता की कमी पायी जाती है। योग्यता के अनुरूप इनकी शैक्षणिक उपलब्धि कम होती हैं।
- बालक के शैक्षणिक पिछड़ेपन का प्रभाव उनके दूसरे क्षेत्रों के कार्यों में भी देखने को मिलता है। (परंतु ऐसा सर्वथा हो यह आवश्यक नहीं है)
पिछड़ेपन के कारण Causes of Backwardness :-
पिछड़ेपन के कई कारण हो सकते हैं जिनमें निम्न कुछ प्रमुख कारण हैं :-
- बालक की बुद्धिलब्धि का कम होना या मंद होना। बालक का शारीरिक स्वास्थ्य सही नहीं होना; जैसे- सिर में दर्द, पाचन सही नहीं हो पाना, अकसर गैस बनना, अन्य रोगों आदि का होना।
- बालक के शारीरिक दोष का होना; जैसे-ज्ञानेंद्रियों में दोष, बोलने में दोष, विकलांगता, निर्बलता आदि।
- पारिवारिक स्थिति अगर सही नहीं हो; जैसे- – माता-पिता में झगड़ा होते रहना, आर्थिक तंगी, उचित वैवाहिक समायोजन का अभाव, भोजन का न मिलना, आदि।
- स्कूल की वातावरणीय स्थिति इसका एक प्रमुख कारण है। स्कूल भवन की कमी या अपर्याप्तता, गंदे, संकीर्ण तथा शोरगुल वाले वातावरण में विद्यालय का स्थित होना, दोषपूर्ण पाठ्यक्रम, दोषपूर्ण शिक्षण विधि, शिक्षक का आचरण आदि।
- बालकों में संवेगात्मक अस्थिरता अर्थात् बालक संवेगात्मक रूप से स्थिर न हो, जैसे- जरा-जरा सी बात पर आक्रमक होना या फिर रोने लगना। आदि। इससे बालक का आत्मविश्वास भी प्रभावित होता है।
- बालक समाज का हिस्सा है और ऐसे में वह समाज से काफी प्रभावित होता है। सामाजिक परिवेश के कारण कई बार बालक स्कूल में कम समय व्यतीत करना चाहता है तथा वह स्कूल से भागने के तरीके ढूँढ़ता है। इस कारण भी वह कक्षा में पढ़ाए गए पाठ्यक्रम को नहीं सीख पाता है।
- इसके अन्य कारण भी हैं: जैसे-मित्र – समूह, मित्र-समूह, टेलीविजन, सिनेमा आदि जो बालकों को प्रभावित करते हैं।
पिछड़ेपन को दूर करने के उपाय :-
- बालक के शारीरिक दोषों की जांच कर उसका निराकरण करना।
- बालकों को पौष्टिक आहार के प्रति जागरूक करना तथा सरकार की ओर से ऐसे आहार को प्रदान किया जाना ।
- बालकों के स्वास्थ्य की जाँच करना ।
- बालक पर व्यक्तिगत ध्यान देकर उनकी समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है।
- बालक जो पढ़ाई के प्रति रुचि नहीं दिखलाते उन्हें शिल्पकला, हस्तकला, चित्रकला, संगीत, नृत्य, खेल या अन्य क्षेत्रों में उनके रुचि के अनुकूल आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
- विद्यालय तथा परिवार का वातावरण उचित बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए। परिवार का वातावरण उचित बन सके इसके लिए बालक के माता-पिता से भी आवश्यकतानुरूप बात करनी चाहिए।
- स्कूल से भागने की प्रवृत्ति का कारण जानकार उसका निवारण ढूँढ़ने का प्रयास करना चाहिए।
मानसिक रूप से पिछड़े बालक Mentally Retarded Children :-
ऐसे बालक जिनकी मानसिक योग्यता सामान्य मानसिक योग्यता से कम तथा सम आयु वर्ग के सामान्य बालक की मानसिक योग्यता की तुलना में मात्रात्मक व गुणात्मक रूप से कम होती है। इसका कारण अकसर शारीरिक या मानसिक रोग होता है और इस दोष के कारण इनमें कई प्रकार की हींन-ग्रंथियाँ (inferiority complex) पैदा हो जाती है। इन बालकों की बुद्धिलब्धि सामान्यतः 80 से कम होती है।
मानसिक पिछड़ेपन या मन्दबुद्धिपन की विशेषताएँ Characteristics of Mentally Retarded or Dullness :-
मन्दबुद्धिपन या मानसिक रूप से पिछड़े बालकों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:-
ऐसे बालक सामान्य बालकों की अपेक्षा धीरे-धीरे विकसित होते हैं।
- अपूर्ण और दोषपूर्ण शब्दावली
- लघु अवधान-विस्तार
- सामान्यीकरण करने सम्बन्धी अयोग्यता
- प्रयोग की दोषपूर्ण आदतें
- निरन्तर अस्वस्थता
- शारीरिक रूप से भी हीन होते हैं
- संवेगात्मक अस्थिरता का होना
- सीमित और साधारण रुचियाँ
- धीमी प्रतिक्रियाएँ
- मौलिकता का अभाव
- अनैतिकता और अपराध की ओर झुकाव
मानसिक पिछड़ेपन या मन्दबुद्धिपन के कारण Reasons of Mentally Retarded or Dullness :-
- वंशानुक्रम इसका महत्त्वपूर्ण कारण है। इसके लिए काफी हद तक गुणसूत्रों का दोष होता है।
- शारीरिक बीमारियों के कारण गर्भावस्था के दौरान माँ का असामान्य स्थिति होने के कारण, या समय से काफी पहले जन्म होना, जैसे-सातवें माह आदि में तब बालक का मानसिक विकास कम होता है।
- बालक संवेग पर यदि उचित नियंत्रण नहीं कर पाता है तब भी उसके अंदर कई प्रकार की मानसिक व्याधियाँ घर कर जाती हैं।
मंद बुद्धि बालकों की समस्याएँ Problem of Mentally Retarded Children :-
ऐसे बालकों में मुख्य रूप से समायोजन की समस्या होती है, परिवार, मित्र-समूह, स्कूल या समाज सभी जगह लगभग इन्हें उपेक्षित किया जाता है तथा इनके अंदर हीनता की भावना भर जाती है जिसके कारण इनका समायोजन सही नहीं हो पाता है। इनका शारीरिक व मानसिक विकास भी सामान्य बालक की तरह नहीं हो पाता है।
मंद बुद्धि बालकों के लिए शिक्षा-व्यवस्था Education for Mentally Retarded Children :-
मंद बुद्धि के बालकों के शिक्षा के संदर्भ में मुख्य बात यह है कि शिक्षा उन्हें ऐसी दी जाए जिससे वो आत्मनिर्भर बन सकें। स्वयं की देखभाल, आर्थिक स्वालंबी, सामाजिक प्रशिक्षण को ध्यान में रखते हुए शैक्षिक कार्यक्रम बनाने चाहिए।
शिक्षा का उद्देश्य :-
- आत्मविश्वास की भावना जागृत हो।
- आर्थिक स्वालंबी बनाने वाली हो।
- व्यक्तिगत स्वच्छता की आदत का विकास करे।
- समाज तथा स्कूल में समायोजन करने की योग्यता का विकास
- सामाजिक गुणों का विकास करना।
पाठ्यक्रम :-
- शारीरिक सुरक्षा तथा प्राथमिक उपचार की शिक्षा
- पढ़ने, लिखने, बोलने की शिक्षा
- आचरण, नैतिक, सद्भाव की शिक्षा
- स्वच्छता, भोजन (पौष्टिक आहार), संबंधी शिक्षा।
- शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य संबंधी शिक्षा।
कक्षा व्यवस्था :-
- कक्षा का आकार
- व्यवस्थित कक्षा
- वह शिक्षक जिनमें धैर्य, सहनशीलता तथा स्नेहपूर्ण व्यवहार करने की गुण हो।
Some important Topics of CDP
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Pavlovs-classical-conditioning-theory
Thorndikes-law-of-learning-part-1
Gender-issues-in-social-construction
Socialization-process समाजीकरण की प्रक्रिया
Evaluation-of-learning | मूल्यांकन
individual-difference | व्यक्तिक विभिन्नता
समस्यात्मक बालक :-
समस्यात्मक बालक वैसे बालक को सामान्यतः कहा जाता है जिसके व्यवहार में गंभीर असमानताएँ दिखाई पड़ती हैं। जिसके कारण न सिर्फ शिक्षकों को परेशानी होती है बल्कि पूरी क्लास के वातावरण के साथ-साथ उस बालक का व्यक्तित्व भी प्रभावित होता है। ऐसे बालक विद्यालय, परिवार, समाज आदि के लिए समस्या बन जाते हैं।
दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि वे बालक जिनके व्यवहार से समस्याएँ उत्पन्न होती है जो समाज व स्वयं उसके व्यक्तित्व के लिए हानिकारक होती है। किसी विशेष लक्षण के प्रदर्शन के कारण ये समस्या उत्पन्न करते रहते हैं।
इन बालकों के प्रकार :-
- चोरी करने वाले
- स्कूल से भागने वाले
- झूठ बोलने वाले
- कक्षा में अन्य छात्रों को परेशान करने वाले
समस्यात्मक व्यवहार के कारण :-
- अल्प बौद्धिक क्षमता का होना
- जन्मजात संवेगात्मक प्रवृत्तियाँ (कुछ बालक जन्म से ही नकारात्मक सोच, विद्रोही प्रवृत्ति के होते हैं।)
- पारिवारिक वातावरण का अनुकूल न होना
- विद्यालय में दोषपूर्ण वातावरण
- बालक की शारीरिक अक्षमता
- सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियाँ
समस्यात्मक बालक की शिक्षा :-
- समस्यात्मक बालक को शिक्षा प्रदान करते समय निम्न प्रमुख बातों को ध्यान में रखना चाहिए ताकि उनको उचित रूप से शिक्षा दिया जा सके जो उनके जीवन के लिए प्रभावकारी साबित होगा –
- बालकों को उनकी क्षमता के अनुकूल शिक्षा प्रदान करना चाहिए।
- बालकों की शिक्षा में उनकी रुचि का ध्यान रखा जाना चाहिए।
- शिक्षक को उन अध्यापन विधियों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, जिससे ऐसे बालक सरलतापूर्वक ग्रहण कर सकें।
- पारिवारिक एवं स्कूल का वातावरण दोष रहित हो ऐसा प्रयास करना चाहिए।
- बालकों के मनोरंजन का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।
- ऐसे बालकों के पढ़ाने या में प्रयोगात्मक विधि, खेल विधि, क्षेत्र अध्ययन विधि आदि का प्रयोग करना ज्यादा उचित रहेगा।
- ऐस बालकों के सलाह के लिए स्कूल में परामर्शदाता/सलाहकार की व्यवस्था होनी चाहिए। माता-पिता का सहयोग व अनुराग की भावना ऐसे बालकों के लिए आवश्यक है ताकि सांवेगिक रूप से ऐसे बालकों में अच्छे गुणों का विकास किया जाना चाहिए।
बाल अपराधी :-
ऐसे बालक जो समाज के मान्य नियमों का उल्लंघन करते हैं तथा समाज विरोधी कार्य करते हैं।
जबकि कानूनी परिभाषा यह है कि यदि कोई अपराध 18 वर्ष (वर्तमान में कुछ गंभीर अपराधों के लिए यह उम्र घटाकर 16 वर्ष कर दी गई है।) से कम आयु के बालक द्वारा किया जाता है तो ऐसे बालक बाल अपराधी कहलाते हैं।
बाल अपराधियों की विशेषताएँ :-
- ऐसे बालकों में आक्रमणशीलता सामान्यतः अधिक पाई जाती है।
- ऐसे बालकों में असहिष्णुता (Intolerance) की भावना भी अधिक पाई जाती है।
- ऐसे बालक समाजिक नियम, कानूनी बंधनों तथा मानकों को अक्सर तोड़ते रहते हैं।
- ऐसे बालकों में अहंकार की भावना अधिक पाई जाती है।
- ऐसे बालकों में नकारात्मक मनोवृत्ति, वैर भाव, तथा बदले की प्रवृत्ति पाई जाती है।
बाल अपराध के कारण :-
बाल अपराधी कोई जन्मजात नहीं होता लेकिन कई बार एक कारण को भी जिम्मेदार नहीं माना जा सकता है। बाल अपराध के कई कारण हैं :-
- आनुवंशिकता
- शारीरिक अक्षमता
- आर्थिक कारण
- मनोवैज्ञानिक कारण
- सामाजिक कारण (घर की अवस्था, स्कूल का वातावरण, मित्रगण, शिक्षक का व्यवहार)
अपराधी बालकों के उपचार :-
बाल अपराधी बालकों के उपचार के लिए मुख्य रूप से निरोधात्मक और साध्य (Curative) प्रविधि (Technique) का उपयोग किया जाता है।
निरोधात्मक प्रविधियाँ :-
निरोधात्मक प्रविधि का अर्थ ऐसे प्रविधि से है जिससे बालकों को अपराध से बचाया जा सके :-
- घर का उचित वातावरण
- बालकों की आवश्यकताओं का ध्यान देना अच्छे मित्र समूहों के प्रति प्रेरित करना
- खेल मनोरंजन आदि में उनका ध्यान लगाना
- उचित शिक्षा की व्यवस्था करना विद्यालय में अच्छा वातावरण प्रदान करना
- सरकारी सहायता के रूप में स्कूल के आस-पास चलचित्रों की अश्लील तस्वीरों को लगाने से रोकना ।
- स्कूल के आस-पास धूम्रपान आदि की दुकानों पर प्रतिबंध।
साध्य प्रविधियाँ :-
- परामर्श व उचित निर्देश उपलब्ध कराकर उन्हें उचित रास्ते पर लाने का प्रयास करना।
- बाल अपराध न्यायालय में इनके मामलों की सुनवाई कर आयु व अपराध की गंभीरता के अनुकूल सजा का प्रावधान होना चाहिए।
- यदि बालक की प्रारंभिक गलती हो तो उसे चेतावनी मात्र देकर यह कहते हुए कि भविष्य में ऐसी गलती दुबारा न करे, छोड़ा जाए।
- मनोवैज्ञानिक विधियों का प्रयोग कर उनके विचार में परिवर्तन लाया जाय ताकि वे समाज की मुख्य धारा से जुड़ सकें।
- विद्यालय में भी सलाहकार समिति होनी चाहिए जो बाल अपराधी बालकों की पहचान करे तथा उन्हें इससे मुक्त करने का उचित सलाह प्रदान करे।
अधिगम अक्षम बालक :-
ऐसे बालक वे होते हैं जो सामान्यतः सामान्य बुद्धि के होते हैं परंतु सीखने की दृष्टि से किसी-न-किसी विकार की वजह से पिछड़ जाते हैं। ऐसे बालक सुनने, बोलने, पढ़ने-लिखने, तर्क करने या गणितीय योग्यताओं को सीखने या प्रयोग करने में कठिनाई का सामना करते हैं।
अधिगम अक्षम बालक के प्रकार :-
- अक्लेशियाः सुनी हुई भाषा को ग्रहण करने में कठिनाई होना।
- डिस्लेक्सियाः वाक्तव्य, वाक्यों को पढ़ने में दोष होना । जैसे – श को स कहना, V को वी कहना।
- हाइपरलेक्सिया: शब्द या वाक्य को ठीक से नहीं समझ पाना या बिल्कुल नहीं समझना ।
- डिस्ग्राफियाः शब्द या वाक्यों को त्रुटिपूर्ण रूप से लिखना तथा उनका उच्चारण करना; जैसे Essay को Sa लिखना ।
- डिस्कैलकुलिया : गणित की गणना करने में इसमें त्रुटि होता है; जैसे- बालक 9×4 को 36 की जगह 63 लिख देते हैं।
इन बच्चों के लिए उपचारात्मक शिक्षण व्यवस्था का उचित नैदानिक व्यवस्था परामर्श, निर्देशन आदि के माध्यम से उनके योग्यता को बढ़ाने का तथा उनके कौशल प्रशिक्षण पर ध्यान देने की आवश्यकता है। सामान्यतः ऐसे बालकों के शिक्षा के लिए योग्यता प्रशिक्षण उपागम, कौशल प्रशिक्षण उपागम का प्रयोग किया जाता है।