समावेशी शिक्षा Inclusive Education
समावेशी शिक्षा को सभी व्यक्तियों की समानता के अधिकार को पहचानने और सभी बालकों को विशिष्ट आवश्यकताओं के साथ-साथ शिक्षा के समान अवसर के रूप में देखा जाता है। समावेशी शिक्षा अपंग बालकों की शिक्षा सामान्य स्कूल तथा सामान्य बालकों के साथ कुछ अधिक सहायता प्रदान करने की ओर इशारा करती है। शारीरिक तथा मानसिक रूप से बाधित बालकों को सामान्य बालकों के साथ सामान्य कक्षा में विशिष्ट सेवाएँ देकर विशिष्ट आवश्यकताओं को प्राप्त करने के लिए शिक्षा देने में सहायता करती हैं।
समावेशी शिक्षा की प्रकृति Nature of Inclusive Education
समावेशी शिक्षा के बारे में सामान्य रूप यह कहा जा सकता है कि सामान्य विद्यालय में सामान्य विद्यार्थी के साथ रहकर विशिष्ट प्रकार के बालकों को शिक्षा प्रदान करना है, जिससे असमर्थ बालकों का सर्वांगीण विकास हो सके। समावेशी शिक्षा में असमर्थ व सामान्य दोनों प्रकार के बालक होते हैं। असमर्थ बालक को कुछ आवश्यकतानुरूप विशेष सुविधाएँ प्रदान की जाती है। इससे असमर्थ बालक भी अपने आप को मानसिक रूप से मजबूत बनाते हैं। समावेशी शिक्षा में बालकों में आपसी सूझ-बूझ का विकास होता है। बालक एक-दूसरे की सहायता भी करते हैं तथा इससे समायोजन में भी मदद मिलती है।
समावेशी शिक्षा के उद्देश्य
- छात्रों में समानता की भावना का विकास करना ताकि प्रत्येक छात्र समान गति से आगे बढ़े।
- समावेशी शिक्षा मानती है कि व्यवस्था बालक के अनुरूप होना चाहिए।
- छात्रों के अंदर समायोजन मानसिक मजबूती प्रदान करना।
- असमर्थ बालकों को सामान्य बालकों के साथ पढ़ाकर उनका आपसी समन्वय बनाना तथा पूर्वाग्रहित सामाजिक उपेक्षाओं से बचाना।
- असमर्थ बालकों के लिए भी पुस्तकालय, खेल, कला, संगीत आदि की व्यवस्था करना तथा उनमें सहभागी बनाना ।
- शिक्षक बालकों पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान देना ताकि बालकों के प्रति की गई किसी भी उपेक्षा के कारण वैमनस्यता का भाव उत्पन्न न हो।
- सभी छात्रों की समय सारणी लगभग एक जैसी ही हो।
- समावेशी शिक्षा का निर्धारण छात्रों की बुद्धिलब्धि, मानसिक, शारीरिक आदि योग्यताओं को ध्यान में , रखकर किया जाता है।
- असमर्थ छात्रों की असमर्थता का पता कर उनकी असमर्थता को दूर करने का प्रयत्न किया जाता है।
समावेशी शिक्षा की आवश्यकता
समाज में विभिन्नता को देखते हुए विद्यालय को इसके प्रति संवेदनशील होने की आवश्यकता है। बालकों में समानता, सहयोग, समायोजन, प्रेम, सहानुभूति, नैतिक गुणों के विकास तथा असमर्थ बालकों को मानसिक दृढ़ता प्रदान करते हुए उपेक्षाओं की हीन भावना से बाहर निकालना।
वंचित बालक Disadvantaged Children
वंचित या अलाभान्वित बालक वे बालक होते हैं जो सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक रूप से अलाभान्वित समुदाय से आते हैं। शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने ‘वंचित’ का एक ठोस एवं उपयोगी अर्थ बतलाया है कि वंचित बालक वैसे बालक को कहा जा सकता है जो सामाजिक-आर्थिक रूप से तथा सांस्कृतिक रूप से अलाभान्वित समुदाय से आते हैं। भारत में अधिकतर दलित एवं आदिवासी जाति के समुदाय से आने वाले बालकों को वंचित बालक की श्रेणी में रखा जाता है। भारत में अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति समुदाय में लगभग 90% परिवार ऐसे हैं जो सामाजिक-आर्थिक तथा सांस्कृतिक रूप से पिछड़े हुए हैं और ऐसे परिवार के बालकों को वंचित बालक की संज्ञा दी जाती है।
वंचित बालकों की पहचान Identity of Disadvantaged Children
वचन का तात्पर्य है कि जब किसी बालक की समाज में रहते हुए सामाजिक, आर्थिक व शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति न हो सके। जब उनसे उसे वंचित रहना पड़े, तब वह वंचित बालक होता है।
- शिक्षा मनोविज्ञान में वंचित बालक के क्षेत्र को सीमित किया गया है।
- भारत में अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) के लोग ज्यादातर इस परिवार से आते हैं।
- ऐसे बालकों मे अधिकांशतः आत्मविश्वास की कमी पायी जाती है। नकारात्मक सोच ज्यादा रखते हैं।
- अलाभान्वित बालकों की बोलचाल लाभान्वित बालकों के मुकाबले भिन्न होती है।
- वंचित बालकों का बौद्धिक निष्पादन सीमित होता है।
- पारिवारिक पृष्ठभूमि रूढ़िवादी होती है। परिवार में शिक्षा का अभाव होता है।
वंचित बालकों के प्रकार Types of Disadvantaged Children
- सामाजिक दृष्टि से वंचित बालक
- आर्थिक दृष्टि से वंचित बालक
- अनुसूचित जाति के बालक
- अनुसूचित जनजाति के बालक
वंचन के प्रभाव Consequences of Deprivation
- संज्ञानात्मक विकास में कमी
- अभिप्रेरणा में कमी
- शैक्षिक उपलब्धि का स्तर कम होना
- अभिवृत्ति का नकारात्मक होना
वंचित बालकों की शिक्षा Disadvantaged Children Education
- सामाजिक, आर्थिक व शैक्षिक रूप से वंचित बालकों के लिए आवश्यक है कि उचित शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
- वंचित समूह के बालकों को सामान्य बालकों के साथ शिक्षा दी जानी चाहिए।
शिक्षा व नियम संबंधी महत्त्वपूर्ण तथ्य
- शिक्षा को समवर्ती सूची में रखा गया है, समवर्ती सूची पर केंद्र राज्य दोनों नियम बना सकते हैं।
- शिक्षा पहले राज्य सूची में था, लेकिन 42वें संविधान संशोधन के द्वारा इसे समवर्ती सूची में रखा गया।
- संविधान में 86वें संशोधन के द्वारा 2002 में 21(A) जोड़ा गया, जिसके अंतर्गत 6-14 वर्ष तक के बालकों को अनिवार्य व निःशुल्क शिक्षा देने की बात कही गयी है।
- अल्पसंख्यक समुदाय की शिक्षा हेतु अनुच्छेद 30 (1) (2) दिया गया है।
- महिलाओं, बच्चों तथा पिछड़े वर्गों की शिक्षा हेतु अनुच्छेद 15 (iii), (iv), (v) में विशेष प्रावधान दिए गए हैं।