भाषा और विचार
भाषा और विचार : भाषा व्यक्ति के विचार को व्यक्त करने का एक माध्यम है। यह हमें विचारों का आदान-प्रदान करने में मदद करती है। भाषा के माध्यम से हम अपने विचार किसी के सामने रख सकते हैं। भाषा के माध्यम से विचारों को प्रकट करने में स्पष्टता आ जाती है। भाषा के द्वारा हम अपने भावों को अभिव्यक्त करते है। यह हमें स्वयं अर्जित करनी पड़ती है।
विश्वकोष के अनुसार, “भाषा ध्वनि प्रतीकों या संकेतों की ऐसी मान्य व्यवस्था है जिसके द्वारा एक समूह के लोग आपस में विचार-विनिमय करते हैं। “
भाषा और विचार की विशेषताएँ
- भाषा अभिव्यक्ति का एक माध्यम है।
- भाषा का विचारों से गहरा संबंध है।
- भाषा स्वयं के द्वारा अर्जित की जाती है।
- भाषा का अर्जन लगातार अनुकरण के द्वारा होता है।
- भाषा में समाज द्वारा स्वीकृत ध्वनि संकेतों का प्रयोग किया जाता है।
- भाषा समाज, संस्कृति तथा सभ्यता से जुड़ी होती है।
- भाषा जो आस-पास बोली जाती है उसे आसानी से अर्जित कर लिया जाता है।
- भाषा की अपनी एक संरचना होती है।
- भाषा मे विभिन्नता और अनेकरूपता होती है।
- प्रत्येक भाषा की अपनी सीमा और संरचना होती है।
- भाषा संश्लेषशात्मकता से विश्लेषणात्मक की तरफ ले जाती है।
भाषा विकास का क्रम
Sequence of Language Development
बालक में भाषा विकास को दो चरणों में बाँटा गया है
1. प्राक् भाषा विकास अवस्था
(Pre speech development)
2. उत्तरकालीन भाषा विकास अवस्था
(later speech development)
1. प्राक् भाषा अवस्था (Pre-speech Development)
(i) क्रंदन (Crying): बालक जन्म लेते ही रोने, चिल्लाने की चेष्टा करता है। बालक रोता है तो रोने से उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।
(ii) बलबलाना (Babbling): बालक रोने के अलावा दूसरे महीने से कुछ अस्पष्ट ध्वनियाँ भी पैदा करता है जिनमें स्वर ध्वनियों का प्रयोग करता है, तीन चार माह बाद वह व्यंजन ध्वनि कोई-कोई बोलना शुरू करता है; जैसे बा, पा, मा, आदि। परंतु ये पूरी तरह स्पष्ट नहीं होते। 7-8 महीने में वह छोटे शब्द बोलने लगता है।
(iii) हाव-भाव (Gestures): हाव-भाव का प्रदर्शन बालक भाषा के पूरक के रूप में करता है। ऐसा वह इसलिए करता है कि शब्दों को वो बोल नहीं पाता है।
(iv) सांवेगिक अभिव्यक्तिः बालक संवेग को हँसकर, बाँह फैलाकर प्रदर्शित करता है वहीं दुःखद संवेग को रोकर तथा चिढ़कर अभिव्यक्त करता है।
2. उत्तरकालीन भाषा विकास की अवस्था (Later Speech Development ) :
इस अवस्था में क्रियात्मक पहलू और मानसिक पहलू का विकास होता है। अर्थपूर्ण शब्द भाषा का निकालना क्रियात्मक पहलू है तथा उन शब्दों को सही अर्थ – में समझना मानसिक पहलू है। इसमें पाँच चरण हैं
(i) दूसरों की भाषा समझनाः इसमें बालक को दूसरे की भाषा समझना होता है। दूसरे की भाषा समझने के लिए यह आवश्यक है कि शिशु परिवार के सदस्यों द्वारा बोले जाने वाले वाक्यों तथा शब्दों का अर्थ समझे तभी वह शब्दों को सही-सही प्रयोग कर पाएगा।
(ii) शब्दावली का निर्माण करनाः शब्दावली निर्माण में बालक वैसे शब्दों को पहले सीखता है जो उसकी आवश्यकता की पूर्ति करे। दो वर्ष के बालक का औसतन शब्द कोश 200-300 शब्द होता है।
(iii) शब्दों का वाक्य में प्रयोग: शब्दों को मिलाकर बालक वाक्य छोटे-छोटे बनाने लगता है; जैसे-माँ, दूध दो। भूख लगी है आदि। वाक्य प्रयोग में धीरे-धीरे प्रवीणता भी आती है। लेकिन कई बार यह भी देखा जाता है कि 20-24 महीने का बालक कुछ बड़े वाक्य का भी प्रयोग कर देते हैं; जैसे- “आपका दिमाग खराब हो गया है क्या।” इतने लंबे वाक्य कोई प्रयोग करता है तो यह अपवादिक स्थिति है तथा वातावरण का प्रभाव माना जाता है।
(iv) उच्चारणः बालक को न सिर्फ शब्द का प्रयोग करना चाहिए बल्कि उसके सही-सही उच्चारण भी सीखना होता है। उच्चारण वह अनुकरण द्वारा सीखता है। उच्चारण बालक के अधिगम की प्रक्रिया पर निर्भर करता है।
(v) भाषा विकास का स्वामित्वः इस अवस्था में व्यक्ति भाषा को लिखना, पढ़ना, बोलना अच्छे से जानने लगता है। भाषा पर भी अच्छा नियंत्रण हो जाता है। भाषा पर पूरा नियंत्रण हो ऐसा सबके लिए संभव नहीं है, परंतु आवश्यकतानुरूप इसको वो जान लेता है।
भाषा सीखने के साधन
भाषा सीखने के निम्न प्रमुख साधन हैं:-
1. अनुकरण (Imitation): बालक परिवार के सदस्यों द्वारा प्रयोग की जाने वाली भाषा को सर्वप्रथम सीखता है। बालक के सामने जैसे बोलते हैं वह अनुकरण के माध्यम से उसे सीखता है।
2. खेल (Play): खेल के माध्यम से बालक टेढ़ी-मेढ़ी लकीर खींचना, खेल सामग्री को देखकर अक्षर बनाना ऐसे खेलों में प्रयोग भाषा के अक्षरों को लिखना, पढ़ना, बोलना सीखता है, जैसे -वृत्त बनाना, Apple देख ‘A’ बनाना आदि।
3. कहानी सुनकरः बालकों को कहानी सुनना बहुत अच्छा लगता है। कहानी में काल्पनिक बाते तो होती है, परंतु वो नैतिकता, पशु के ऊपर, खेल से संबंधित या छोटे बच्चों पर हो तो उसमें प्रयुक्त भाषा के शब्दों को जल्दी सीख लेता है।
4. प्रश्नोत्तरः बालक अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए अकसर प्रश्न पूछते हैं, इन प्रश्नों के उत्तर पाकर वह वस्तु का अर्थ समझते हैं तथा नये शब्दों को ग्रहण भी करते हैं उपरोक्त साधन भाषा सीखने में बालक को सहायता प्रदान करते है।
भाषा विकास के सिद्धान्त
भाषा विकास के निम्न प्रमुख सिद्धांत हैं :-
1. वागेंद्रियों की परिपक्वताः भाषा का विकास वागेंद्रियों की परिपक्वता पर निर्भर करता है। वागेंद्रियों, जैसे-जिह्वा, होठ, दाँत, गला, तालु, नाक आदि। जब तक इन अंगों में परिपक्वता नहीं होगी तब तक भाषा पर नियंत्रण संभव नहीं है। इन अंगों के विकास के साथ वातावरण का उचित होना भाषा विकास के लिए आवश्यक है।
2. अनुबंधन का सिद्धांतः भाषा विकास में साहचर्य का बहुत महत्त्व है। यह उद्दीपक-अनुक्रिया (S-R) के बीच स्थापित होता है। स्किनर का मानना है। कि व्यवहार कार्यों की तरह भाषा का भी विकास होता है। उद्दीपक-अनुक्रिया के बीच अनुबंधन स्थापित होता है जो विकास भाषा के विकास में मददगार साबित होते हैं।
3. बैंडूरा का सिद्धांत: बैंडूरा अपने सामाजिक सीखने के सिद्धांत में अनुकरण पर बल डालते हुए कहते हैं कि बालक अपने परिवार तथा आस-पड़ोस में प्रयोग की जाने वाली भाषा को अनुकरण के माध्यम से सीखता है। बालक के आस-पास जिस प्रकार के शब्द तथा वाक्य का प्रयोग होता है उसे वह आसानी से सीख लेता है।
4. चोमस्की का भाषा सिद्धांत: चोमस्की का मानना है कि बालक में शब्दों या भाषा का सीखना अनुकरण व पुनर्बलन पर आधारित है। बालक कुछ निश्चित नियमों का अनुकरण कर शब्द या उन शब्दों से वाक्य निर्माण करना सीख लेते हैं। वाक्य निर्माण जिन नियम के अंतर्गत बालक करते हैं ‘जेनरेटिव ग्रामर’ कहते हैं।
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विचार की भूमिका
भाषा संप्रेषण में सहायक होती है। संप्रेषण व प्रत्यक्षीकरण के माध्यम से ही हमारे अंदर भाव, दृष्टिकोण, सूचना, कौशल आदि संगृहित होता है और इनसे ही विचार निर्मित होता है। यह प्रक्रिया तभी सम्भव होती है जब शिक्षक और बालक को उस भाषा का ज्ञान हो। सम्प्रेषण को समझाने के बाद बालक अपनी अनुक्रिया विचारों के रूप में व्यक्त करता है। संप्रेषण द्वारा प्राप्त सूचना को जिस रूप में विश्लेषित किया जाएगा विचार वैसे ही बनेंगे।
विचारों के प्रकार ( Type of Thoughts )
विचारो को मुख्यतया दो भागों में बाँटा जाता है :-
- शाब्दिक विचार (Verbal Thought)
- अशाब्दिक विचार (Non-Verbal Thought)
शाब्दिक विचार उन सन्देशों या अभिव्यक्ति से सम्बन्ध रखते हैं जोकि शाब्दिक रूप से भेजे जाते हैं। शाब्दिक विचार निम्न ढंग से होते हैं :-
(i) मौखिक विचार :- ऐसे विचार जिनको बालक सुनकर या बोलकर ग्रहण या व्यक्त करता है, मौखिक विचार कहलाते हैं, जैसे किसी बालक का अपने दोस्तों के साथ बातचीत करना।
(ii) दृष्टि विचार :- ऐसे विचार जिनकी अभिव्यक्ति बालक देखकर ग्रहण करता है जैसे पोस्टर, चार्ट आदि।
(iii) मौखिक दृष्टि विचार :- ऐसे विचार जिन्हें बालक सुनकर तथा देखकर ग्रहण कर सकता है परन्तु अपनी तरफ से कोई अभिव्यक्ति नहीं दे सकता है जैसे टीवी देखना आदि।
(iv) लिखित विचार :- ऐसे विचार जिन्हें कोई बालक लिखकर अपनी अभिव्यक्ति को व्यक्त करता है या लिखित स्रोतों को पढ़कर उस माध्यम के विचार को ग्रहण करता है जैसे पत्र लिखना, समाचार-पत्र पढ़ना आदि।
अशाब्दिक विचार (Non-Verbal Thought)
अशाब्दिक विचार उन सन्देशों या अभिव्यक्ति से है जो अशाब्दिक रूप से भेजे या ग्रहण किए जाते हैं। इनका वर्गीकरण निम्न प्रकार से है :-
(i) शारीरिक भाषा :- ऐसे विचार जो शरीर द्वारा दिए जाते हैं। जैसे हाथ हिलाना, अँगुली दिखाना आदि।
(ii) कूट भाषा :- कभी-कभी विचारों का सम्प्रेषण ऐसे कूट के माध्यम से किया जाता है जो शाब्दिक रूप में नहीं होते इनके अर्थ को पहले से ही सुनिश्चित कर दिया जाता है।
भाषा को प्रभावित करने वाले कारक:-
भाषा को प्रभावित करने में स्वास्थ्य, बुद्धि, सामाजिक – आर्थिक स्तर, परिवार का आकार, प्रशिक्षण विधि, माता-पिता की प्रेरणा , जन्मक्रम, द्विभाषावाद आदि प्रभावित करते हैं।
भाषा विकास में बाधाएँ :-
भाषा विकास में तुतलाना, हकलाना, अत्यधिक रुदन. अस्पष्ट उच्चारण, गलत उच्चारण का शिक्षण (जैसे- ‘V’ को ‘वी’ बोलने जगह ‘भी’ बोलना) वेकेन्सी की जगह भेकेन्सी बोलना यह सामाजिक बोलचाल व गलत प्रशिक्षण की वजह से होता है।
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