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Piaget theory of Moral Development प्याजे का नैतिक विकास का सिद्धांत #ctet2024

 

 

Piaget theory of Moral Development

प्याजे का नैतिक विकास का सिद्धांत

 

जीन पियाजे ने 1932 में एक किताब लिखी “The Moral Judgement of the Child” पियाजे का मानना था कि बच्चों के नैतिक निर्णय के विकास में एक निश्चित क्रम एवं तार्किक पैटर्न होता है जो बौद्धिक विकास से संबंधित होता है।

Piagets Theory of Cognitive Development संज्ञानात्मक विकास 

यहां पढ़ें संज्ञानात्मक विकास👆🏻👆🏻👆🏻👆🏻👆🏻👆🏻👆🏻👆🏻

 

पियाजे के अनुसार– 

‘“नैतिक विकास न्याय के परिपक्व तथा स्वःस्फूर्त प्रत्ययों की प्राप्ति है जिसे बालक अपने को वातावरण के साथ अंतःक्रिया करते हैं, उन्हें परिवर्तित व परिमार्जित करते हैं। “

Piaget : नैतिक विकास की अवस्था

1. प्रतिमान हीनता (Anomy)

यह अवस्था जन्म से 5 वर्ष तक होती है। इस अवस्था मे बालक सामाजिक बंधन, कानून, प्रतिबंध से अनभिज्ञ होते हैं। बालक के व्यवहार का मुख्य आधार सुख-दुख का भाव होता है।

2. परायत्त – सत्ता (Heteronomy)

यह अवस्था 5 वर्ष से 8 वर्ष की अवस्था होती है । बालक को उसके उचित आचरण करने का प्रशिक्षण दिया जाता है और नैतिक विकास को पुरस्कार तथा दंड से प्रभावित किया जाता है। नैतिक विकास बाह्य सत्ता द्वारा नियंत्रित होता है।

3. परायत्तता – पारस्परिकता (Hetrocity Reciprocity):- 

इस अवस्था मे बालको की उम्र 9 वर्ष से 13 वर्ष होती है। इस समय बालक अपने समान आयु वर्ग व वयस्कों के साथ सहयोग पर बल तथा उनके विचारों से प्रभावित होते है। बालक स्वयं यह समझने लगता है कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं? लेकिन इसका वो आधार दूसरे की भावना को बनाता है; जैसे-मेरे इस व्यवहार से उनको दुःख न पहुँच जाए।

4. स्वायत्तता किशोरावस्था (Autonomy Adolescence) :- 

इस अवस्था मे बालको की उम्र 13 वर्ष से 18 वर्ष होती है। किशोर में पूर्ण रूप से सोचने-समझने की क्षमता विकसित हो चुकी होती है। वे अपने व्यवहार के लिए स्वयं उत्तरदायी होते हैं। किशोर स्वयं के लिए वयस्कों सा सम्मान चाहते हैं।

पियाज ने नैतिक विकास की अवस्था को ध्यान में रखते हुए संपूर्ण विकास काल में नैतिकता के तीन स्तर बताए हैं :- 

1. नैतिक यर्थाथता (Moral Realism) :-

बालक बाध्यता स्वरूप, नैतिक मानकों को स्वीकार करता है तथा उनको आचरण में लाता है परंतु स्वयं की इच्छा से नहीं बल्कि दबाव स्वरूप इन नैतिक प्रतिमान को स्वीकार करता है। नैतिक यथार्थता के दो मूल स्रोत बताए गए हैं- बालकों की बौद्धिक संरचना, वातावरण से प्राप्त अनुभव।

2. नैतिक समानता (Moral Equality) :- 

बालक परस्पर सहमति के आधार पर नियमों को बनाते है। बालक सहयोगात्मक खेल अधिक पसंद करते हैं।

3. नैतिक सापेक्षिता (Moral Relativism) :- 

बिना किसी बाहरी दबाव के न्याय के आदर्श का अनुसरण किया जाता है लेकिन इसमें आवश्यकतानुसार परिवर्तन भी होता है। किशोर स्वयं के नियम बनाना शुरू कर देते हैं।

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